वाई-फाई क्या है? – Wi-Fi in Hindi

इस पोस्ट में आप जानेंगे की वाई-फाई क्या है और कैसे काम करता है।

21वीं सदी अपनी टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के लिए पहचानी जाती है। आज के वक्त में इंसान एक बार खाने और पानी के बगैर तो रह सकता है पर इंटरनेट के बगैर एक पल भी रहना नामुमकिन हो चुका है।

वाई-फाई क्या है?

Wi-Fi Logo

वाईफाई एक ऐसी तकनीक है जिसमें बिना किसी वायर या केबल के हम इंटरनेट को किसी भी रिसीवर डिवाइस तक पहुंचा सकते हैं। यहां रिसीवर डिवाइस से मतलब उन सभी डिवाइसेज से हैं जो इंटरनेट को एक्सेस कर सकती हैं। जैसे कि मोबाइल, लैपटॉप्स और कंप्यूटर्स।

यह टोपिक शुरू करने से पहले हमें कुछ बेसिक टर्मिनोलॉजी को या तकनीकी भाषा को समझना होगा। जो निम्नानुसार है।

कम्प्यूटर: कम्प्यूटर से हम सभी भलीभांति परिचित हैं या दिखने में बिल्कुल टीवी की तरह होता है परंतु अपने आप में सारे कार्य करने में सक्षम है। यह खास तरह के सॉफ्टवेयर से चलता है।

लेपटोप: यह भी कंप्यूटर ही है पर इसे हम कहीं भी ला ले जा सकते हैं। इसमें इनबिल्ट लगी बैटरी इसे लंबे टाइम तक चलाये रखती है।

मोबाइल: शायद ही कोई ऐसा होगा जो मोबाइल से परिचित नहीं होगा। आज के वक्त की सबसे बड़ी जरूरत मोबाइल बन चुका है। यह भी एक तरह का कंप्यूटर ही है पर आकार में काफी छोटा होता है। आजकल के स्मार्ट मोबाइल्स कई तरह के काम अकेले कर सकते हैं।

इंटरनेट: हम कंप्यूटर पर जो भी काम करते हैं उसे कंप्यूटर की मेमोरी में सेव कर देते हैं। जब यह डाटा हमें कहीं ले जाना होता है तो हम उसे पेन ड्राइव में ले जाते हैं। लेकिन जरा सोचिए अगर वह कंप्यूटर जिससे हमें डाटा चाहिए वह किसी और देश में हो तो? इसी समस्या को सुलझाने के लिए कई सारे कंप्यूटर को आपस में जोड़ दिया गया और इसे ही इंटरनेट नाम दिया गया।

आज दुनिया के सारे कंप्यूटर इंटरनेट की मदद से आपस में जुड़े हुए हैं। हर कंप्यूटर का अपना खुद का एक यूनिक आईडी नंबर होता है जिसे हम आईपी ऐड्रेस कहते हैं।

अगर हमारा शहर एक इंटरनेट हैं तो हमारे घर कंप्यूटर्स हैं। किसी भी घर में जाने के लिए हमारे पास उस घर का एड्रेस होना चाहिए। उसी तरह किसी भी कंप्यूटर का डाटा यूज़ करने के लिए हमारे पास उस कंप्यूटर का आईपी एड्रेस होना चाहिए।

पहले यह इंटरनेट केबल्स की मदद से दी जाती थी यानी कि सभी कंप्यूटर्स को केबल या वायर्स की मदद से जोड़ दिया जाता था। पर इसमें सबसे बड़ा नुकसान यह था कि हम इस डाटा को किसी रिमोट प्लेस से एक्सेस नहीं कर सकते थे। यानी कि हमारे पास में एक कंप्यूटर होना चाहिए जो केबल की मदद से बाकी सारे कंप्यूटर से जुड़ा हुआ हो। इसीलिए पहले लोग या तो साइबर कैफे में जाते थे या घरों में इंटरनेट कनेक्शन लगवाते थे। जरा सोचिए अगर आप एक कंप्यूटर साथ में लेकर के घूम रहे हैं जो केबल की मदद से आपके घर पर मौजूद कंप्यूटर से जुड़ा हुआ है तो आपको कितना लंबा केबल चाहिए होगा। यह प्रक्टिकली पॉसिबल नहीं है।

इसी समस्या को सुलझाने के लिए वाईफाई का आविष्कार किया गया, क्योंकि इसमें बिना किसी केबल या वायर के कंप्यूटर्स को आपस में जोड़ा जा सकता था।

जब दो या दो से ज्यादा कंप्यूटर या डिवाइसेज को आपस में जोड़ा जाता है तो इस कंसेप्ट को नेटवर्किंग कहते हैं।

वाईफाई का आविष्कार और उसकी अभी तक की यात्रा इतनी आसान भी नहीं थी। इसके बारे में हम आगे विस्तार से पढ़ेंगे​।

अब हम फिर से हमारे मुख्य टॉपिक वाईफाई पर आ जाते हैं। आज के समय में वाई फाई एक बहुत ही फेमस केबललेस या वायरलेस नेटवर्किंग टेक्नोलॉजी है, जो कि रेडियो वेव्स का इस्तेमाल करके इंटरनेट को बहुत तेजी से एक डिवाइस से दूसरी डिवाइस तक पहुंचाती है।

वाई फाई का नामकरण

लोगों में एक मुख्य विचारधारा​ यह है कि वाईफाई की फुल फॉर्म वॉयरलैस फिडेलिटी (Wireless Fidelity) होती है पर यह सच नहीं है। जिस एलायंस कम्पनीज ने वाईफाई की खोज की थी उसी एलायंस के नाम के credentials को शॉट करके वाईफाई नाम दिया गया था वाईफाई का कोई फुल फॉर्म नहीं होता है बल्कि यह एक टेक्नोलॉजी का नाम है। जिसे IEEE 802.11 स्टैंडर्ड से लिया गया है। यानी सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो जिसे हम वाईफाई नाम से जानते हैं उसका असली तकनीकी नाम IEEE 802.11 है।

वाई-फाई का नाम वाईफाई अगस्त 1999 में रखा गया था। जब वाईफाई अलायंस कम्पनीज ने एक मार्केटिंग कंपनी इंटरब्रांड (Interbrand) को वाईफाई की मार्केटिंग का काम सौंपा था। इंटरब्रांड ने यह शब्द दो अलग-अलग शब्दों को मिलाकर बनाया था। पहला शब्द वाई जिसका मतलब था वायरलेस और दूसरा शब्द फाई hi-fi (High Fidelity) से लिया गया था। Fidelity का मतलब होता है पूर्ण रूप से समर्पित। तो अगर दोनों शब्दों को मिलाकर उनका शुद्ध हिंदी मतलब निकाला जाए तो कुछ इस प्रकार होगा, “बिना किसी माध्यम के पूर्ण रूप से समर्थन”। जो कि कुछ हद तक सही भी है, क्योंकि​ वाईफाई इंटरनेट को बिना किसी माध्यम के रिसीवर डिवाइस तक पूरी तरह से पहुंचा देता है।

Wi-Fi Alliance companies ने कभी भी आधिकारिक तौर पर इस वाई-फाई नाम की घोषणा नहीं करी। पर इस नाम का उपयोग कई बार किया था।

(Standard: जब भी किसी भी शाखा में या डिपार्टमेंट में कोई भी काम बहुत आदर्श स्थिति में होता है तो उस काम को करने के तरीकों को तो प्रोसेजर बना करके स्टैंडर्ड की तरह सेट कर दिया जाता है। अगली बार वही काम अगर फिर से आदर्श स्थिति में करना हो तो यही प्रोसीजर फॉलो किया जाएगा। इसी को स्टैंडर्ड नाम लिया जाता है।

तो अगर किसी काम को करने के 4 आदर्श तरीके मिलते हैं तो उस काम को करने के 4 स्टैंडर्ड्स बन जाते हैं। इन सारे standard को अलग अलग नाम या नंबर दें दिया जाता है।)

अगर आसान शब्दों में कहें तो 2G 3G 4G 5G यह सभी इंटरनेट के अलग-अलग स्टैंडर्ड हैं जिनमें अलग-अलग तरह की स्पीड और फायदे मिलते हैं।

बस वाई-फाई भी इसी तरह के स्टैंडर्ड पर ही बनी हुई सुविधा है।

वाईफाई का इतिहास

1971 में सबसे पहले हवाई आइलैंड को अलोहा नेट (ALOHAnet) नाम की एक वाईफाई पैटर्न से जोड़ा गया था​, जिसे UHF वायरलेस पेकेट नेटवर्क से जोड़ा गया था। यहीं से वाई-फाई की शुरुआत हुई थी।

1985 में यूएस फेडरल कम्युनिकेशंस कमीशन ने आईएसएम बैंड लांच किया था​। इसके लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं थी यह फ्रिक्वेंसी बैंड बिल्कुल उसी तरह की थी जैसे माइक्रोवेव ओवन में इस्तेमाल किए जाते हैं।

1991 में NCR Corporation ने AT&T Corporation के साथ मिलकर 802.11 नाम से वाईफाई की दूसरी पीढ़ी बनाई। इसे WaveLAN नाम दिया गया था।

इसी बीच ऑस्ट्रेलियाई रेडियो एस्ट्रोनोमर Dr. John O’Sullivan और उनके कलीग्स Terence Percival, Graham Daniels, Diet Ostry और​ John Deane ने वाईफाई के लिए एक Key पेटेंट तैयार किया जो की उनके असली एक्सपेरिमेंट का एक साइड प्रोडक्ट था। यह लोग छोटे ब्लैक होल्स और उनके अंदर मौजूद पार्टिकल्स की साइज की मौजूदगी​ पता करने की कोशिश कर रहे थे। एक्सपेरिमेंट असफल रहा लेकिन इसी एक्सपेरिमेंट में उन्होंने माइक्रोवेव्स की एक्टिविटी पता कर ली। जिसे बाद में वाई फाई के अंदर इस्तेमाल किया गया।

साधारण भाषा में कहें तो इन लोगों ने वाईफाई के अंदर इस्तेमाल आने वाले सिग्नल की साइज बढ़ाने का तरीका ढूंढ लिया था जिससे अब वाईफाई ज्यादा दूरी तक असरदार काम कर सकता था।

यहां वाई फाई के सिग्नल से मतलब यह है कि जब सिग्नल हवा में एक जगह से दूसरी जगह तक बहते हैं तो यह एक तरह से एक पाइप के अंदर बह रहे हो ऐसी संरचना बनाते हैं।

आप इमैजिनेशन करिए कि अगर आधा इंच की मोटाई वाला पाइप है तो उसमें से पानी भी आधा इंच की साइज का ही बहेगा, जिससे हमें पानी आगे मिलने में टाइम लगेगा यानी कि ज्यादा समय में कम पानी मिलेगा। लेकिन अगर हम पाइप की मोटाई बढ़ा दे 1 इंच से उसको बड़ा करके आधा मीटर की मोटाई कर दें तो पानी की तादाद बढ़ जाएगी और हमें कम समय में ज्यादा से ज्यादा पानी मिलेगा

उसी तरह चाहे कोई भी सिग्नल हो इंटरनेट हो वाईफाई हो या मोबाइल सिग्नल हो कोई भी सिग्नल जो हवा में बह रहा है उसकी वर्चुअल साइज बढ़ाने की कोशिश की जाती है ताकि ज्यादा से ज्यादा तादाद में सिग्नल आगे पहुंच सके। बहते हुए सिग्नल के इसी ग्रुप को स्पेक्ट्रम कहा जाता है।

साधारण शब्दों में पानी को हवा में एक जगह से दूसरी जगह तक नहीं भेजा जा सकता उसके लिए हमें एक हार्ड पाइप चाहिए होता है।

बिल्कुल उसी तरह सिग्नल जब हवा में बहता है तो एक अकेला सिग्नल नहीं भेजा​ जा सकता है। इन्हें गृप में भेजा जाता है। यह सारे सिग्नल जब एक ग्रुप में बहते हैं इसी गृप को स्पेक्ट्रम कहा जाता है।

वाई फाई का ग्लोबलाइजेशन

अभी तक Wi -Fi में जो भी विकास किया गया वह सिर्फ और सिर्फ कुछ सिलेक्टेड लोगों के लिए या ऑर्गेनाइजेशंस के लिए ही था।

पहली बार 1997 में आम जनता के लिए वाईफाई रिलीज किया गया। यह 802.11 का पहला वर्जन था जो जनता के लिए जारी किया गया। उस समय इसकी स्पीड बहुत कम थी। यह सिर्फ 2 मेगा बिट / सेकंड की लिंक स्पीड देता था।

1999 में इसे अपडेट किया गया इसकी स्पीड बढ़कर 11 मेगा बीट पर सेकंड की लिंक स्पीड पर आ गई थी। और इसका नाम 802.11b रखा गया था। यहां से वाईफाई आम जनता में पॉपुलर होना शुरू हो गया।

1999 में वाई-फाई एलायंस ने पहली बार एक नया व्यापारिक संगठन बनाकर वाईफाई का ट्रेडमार्क लांच किया और इसे एक व्यापारिक गतिविधि की तरह शुरू किया।

1999 के बाद से लेकर अभी तक के वक्त में वाईफाई के अंदर कई बदलाव किए गए यहां तक कि इसके पेटेंट को लेकर भी कई बार बदलाव किये गये। मुख्यतया वाईफाई CSIRO (Commonwealth Scientific and Industrial Research Organisation) का उत्पादन था पर बाद में वक्त के साथ-साथ उन्होंने और कई टेक्निकल कंपनीज के साथ में अलायंस फॉर्म करते हुए इसका अपडेटेसन लेवल बनाए रखा ।

यह अलायंस मुख्यतः निम्न कंपनियों को मिलाकर के बना है।

  • 3 Com (वर्तमान में अधिग्रहित HPE/ Hewlett-Packard Enterprise)
  • Aironet (वर्तमान में अधिग्रहित Cisco)
  • Harris Semiconductor ( वर्तमान में अधिग्रहित Internal)
  • Lucent (वर्तमान में अधिग्रहत Nokia)
  • Nokia and Symbol Technologies (वर्तमान में अधिग्रहित Zebra Technologies)

अधिग्रहित मतलब जब एक कंपनी दूसरी कंपनी में मर्ज हो जाती है।

वाईफाई काम कैसे करता है

Wi-Fi Data Sending

वाईफाई की काम करने के तरीके को समझने से पहले दो चीजें समझना जरूरी है पहला है कंट्रोलर दूसरा है रिसीवर।

कंट्रोलर: इसमें एक कंप्यूटर को सबसे पहले इंटरनेट से जोड़ दिया जाता है। यहां कंप्यूटर को केबल के जरिए भी इंटरनेट से जोड़ा जा सकता है या पहले से मौजूद किसी बड़े वाईफाई एरिया के कनेक्शन से जोड़ा जा सकता है। इसके लिए computer में wireless network interface controller डिवाइस लगाई जाती है। इस कंट्रोलर और कंप्यूटर के कॉन्बिनेशन को स्टेशन कहते हैं।

यह स्टेशन इंटरनेट को एक बादल की तरह एक लिमिटेड एरिया के अंदर फैला देता है। इसके लिए वह रेडियो वेव्स की मदद लेता है। इस एरिया को वॉयरलैस लोकल एरिया नेटवर्क भी कहते हैं, जिसकी लिमिटेशन कुछ मीटर से लेकर के कुछ किलोमीटर की रेंज तक भी हो सकती है।

रिसीवर: हर वो डिवाइस जो लोकल एरिया नेटवर्क से कनेक्ट हो सकती है वहीं रिसीवर कहलाती है। जेसे कि mobile, laptop, computers, ticket print machine, Ad-Hoc machine, ATM। रिसीवर डिवाइस के अंदर वाईफाई एडेप्टर होना जरूरी है। आजकल हर डिजिटल डिवाइस के अंदर एक वाईफाई चिप लगी हुई आती है जिससे यह डिवाइस किसी भी वाईफाई नेटवर्क से कनेक्ट हो सकती है। बस इसके लिए रिसीवर डिवाइस को वाईफाई के एरिया के अंदर आना होगा। जैसे ही रिसीवर डिवाइस वाईफाई नेटवर्क के अंदर आता है, रिसीवर डिवाइस से हमें एक वाईफाई सिगनल जनरेट करना होता है जोकि वाईफाई स्टेशन से जुड़ जाता है यह कनेक्शन टेंपरेरी होता है ताकि जैसे ही हम एरिया से बाहर जाए कनेक्शन खुद ब खुद टूट जाए।

आप सभी लोगों ने ब्लूटूथ या Xender से अपने फोन को कनेक्ट किया होगा वाईफाई बिल्कुल उसी तरह से काम करता है। एक तरह से हर वो डिवाइसेज जो आपस में बिना किसी केबल के कनेक्ट हो सकती हैं वह सभी वाईफाई डिवाइस ही कहलाती है जैसे कि जेंडर शेयर इट ऐप्स की मदद से हम हमारे फोन के डाटा एक फोन से दूसरे फोन में आसानी से ट्रांसफर कर पाते हैं यह भी एक तरह का वाईफाई का उदाहरण हीं है।

वाई-फाई लोकल एरिया नेटवर्क के एरिया को बढ़ाने के लिए स्टेशन से थोड़ी थोड़ी दूरी पर राउटर्स लगा दिए जाते हैं। राऊटर एक तरह की डिवाइस है जो कि स्टेशन से मिलने वाले सिग्नल को बढ़ा करके आगे तक भेज देती है। राऊटर की मदद से स्टेशन से निकलने वाले सिग्नल को कई किलोमीटर दूर तक भी भेजा जा सकता है। इस पूरे सेट को हम वाईफाई कनेक्शन सेट या प्रोटोकॉल कह सकते हैं।

अब सोचने वाली बात यह है कि आखिर एक अननोन डिवाइस लोकल एरिया नेटवर्क में आते ही वाईफाई स्टेशन से कनेक्ट कैसे हो जाती है:

सबसे पहले जब भी कोई रिसीवर डिवाइस किसी भी वॉयरलैस लोकल एरिया नेटवर्क के अंदर आती है। वह रिसीवर डिवाइस उस एरिया में मौजूद सभी वाईफाई स्टेशंस की जानकारी दे देती है। हमें रिसीवर डिवाइस की स्क्रीन पर मौजूद अवेलेबल नेटवर्क्स में से किसी एक नेटवर्क को चुनना होता है। जेसे ही हम किसी एक अवेलेबल वाईफाई स्टेशन को चुनते हैं हमारे मोबाइल से एक सिग्नल उस स्टेशन तक पहुंचता है और उस स्टेशन से भी एक कन्फर्मेशन सिग्नल रिसीवर डिवाइस तक आता है। और फिर दोनों डिवाइसेज क बीच में एक टेंपरेरी कनेक्शन बन जाता है जैसे ही यह रिसीवर डिवाइस कनेक्ट हो जाता है वह वाईफाई का इंटरनेट इस्तेमाल करने लगता है।

इस वाईफाई नेटवर्क को कौन-कौन सा यूजर इस्तेमाल कर सकता है इसकी इजाजत सिर्फ और सिर्फ वाईफाई स्टेशन का ऑनर या मालिक ही दे सकता है। इसीलिए कई जगह पर वाईफाई को लॉक करके रखा जाता है और अगर आप किसी भी Wi -Fi स्टेशन से कनेक्ट होना चाहते हैं तो आपके पास उस वाईफाई एरिया नेटवर्क का पासवर्ड होना चाहिए। लेकिन आजकल कहीं सारी जगह पर फ्री में वाईफाई दिया जाता है ऐसे नेटवर्क में आते ही खाली आपको उस अवेलेबल वाईफाई स्टेशन को सेलेक्ट करना होता है और आपकी डिवाइस खुद-ब-खुद उससे कनेक्ट हो जाती है।

वाईफाई का आम भाषा में प्रयोग कैसे किया जाता है?

अलग अलग रिसीवर डिवाइसेज के अंदर वाईफाई से कनेक्ट होने के लिए अलग-अलग ऑप्शन दिए गए होते हैं आमतौर पर इन सभी ऑप्शन को एक जैसा ही नाम दिया जाता है ताकि कोई भी यूजर जब भी किसी नई डिवाइस को इस्तेमाल करें तो उसे ज्यादा परेशानी ना हो।

सबसे ज्यादा इस्तेमाल आने वाली चीज है मोबाइल। मोबाइल के अंदर अगर हमें किसी भी अवेलेबल वाईफाई नेटवर्क से जुड़ना होता है तो हम हमारे फोन का वाईफाई आईकन ऑन कर देते हैं। तो हमारे मोबाइल की स्क्रीन पर उस एरिया में मौजूद सभी वाईफाई स्टेशन दिखाई देते हैं। जैसे ही हम किसी भी स्टेशन पर क्लिक करते हैं तो हमारा मोबाइल उस वाईफाई स्टेशन से कनेक्ट हो जाता है और हम उसका इंटरनेट इस्तेमाल कर सकते हैं।

आमतौर पर Wi-Fi station को hotspot भी कहते हैं। आजकल हर मोबाइल में यह सुविधा भी आती है कि हम अगर हमारे मोबाइल के अंदर हॉटस्पॉट को ऑन कर देते हैं तो हमारे मोबाइल के अंदर मौजूद इंटरनेट कनेक्शन को हमारे आसपास बैठे दूसरे यूजर भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

वाईफाई के वर्जंस

वाईफाई के आविष्कार के बाद से ही उसके अंदर कई बार बदलाव किए गए जैसे की उसकी क्षमता या उसकी लिमिट कम ज्यादा करना उसकी एक्यूरेसी बढ़ाना, स्पीड कम ज्यादा करना। हर बार जब भी मौजूदा वाईफाई में कोई भी बदलाव किया जाता है उसे एक अलग नाम दे दिया जाता है जो कि अपडेटेड स्टैंडर्ड कहलाता है। इस तरह से मौजूदा वाईफाई के कई अलग-अलग स्टैण्डर्ड और वर्जन मौजूद है यानी कि अलग-अलग तरह के प्रकार जिन्हें हम हमारी सहूलियत के हिसाब से चुन सकते हैं।यह मौजूदा वर्जन निम्न प्रकार है:

GENERATION IEEE Standard Maximum Linkrate
Wi-Fi 6 802.11ax 600-9608 Mbit/s
Wi-Fi 5 802.11ac 433-6933 Mbit/s
Wi-Fi 4 802.11n 72-600 Mbit/s
Wi-Fi 3 802.11g 3-54 Mbit/s
Wi-Fi 2 802.11a 1.5-54 Mbit/s
Wi-Fi 1 802.11b 1 to 11 Mbit/s

वाईफाई के इस्तेमाल

1. इंटरनेट

वैसे तो वाईफाई का इस्तेमाल सभी जानते ही हैं मुख्यतया तो यह इंटरनेट एक्सेस करने के ही काम आता है जैसा कि इसमें हमने पहले पड़ा कि वाईफाई नेटवर्क को राउटर्स की मदद से उसके मुख्य स्टेशन से कई किलोमीटर की दूरी तक भी पहुंचाया जा सकता है। तो इस तरह से किसी बहुत बड़े इलाके को जैसे कि कोई छोटा शहर इसे पूरे एक ही तरह के इंटरनेट कनेक्शन से जोड़ा जा सकता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि एक ही मैसेज एक ही नेटवर्क पर हमें भेजना होता है वह शहर में मौजूद हर आदमी के पास पहुंच जाएगा। तो यह कम्युनिकेशन का सबसे बेहतरीन उदाहरण है।

इसका सबसे अच्छा इस्तेमाल यह है कि जिन जगहों पर वायर्ड इंटरनेट नहीं पहुंचाई जा सकती है वहां पर वाई-फाई के जरिए 24×7 इंटरनेट पहुंचाई जा सकती है जैसे कि गार्डन, किचन, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, एयरपोर्ट आदि। इस कारण जो लोग महंगे इंटरनेट पैक्स अपने मोबाइल में एक्टिव नहीं करवा सकते हैं वह आसपास के एरिया में मौजूद वाईफाई से कनेक्ट हो जाते हैं और इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं।

हालांकि इन कनेक्शंस के ऊपर कुछ रिस्ट्रिक्शंस लगा दिए जाते हैं ताकि इस इंटरनेट का सही इस्तेमाल ही किया जा सके कोई भी गलत इस्तेमाल न किया जा सके।

2. Ad Hoc Networks

Ad Hoc networks वाईफाई के इस्तेमाल से चलने वाला सबसे बेहतरीन नेटवर्किंग एग्जांपल है आजकल कई सारे ऐसे ऑनलाइन मोबाइल गेम्स अवेलेबल है। कोई भी यूजर अपने मोबाइल पर इन्हे खेल सकते हैं इनमें से ज्यादातर मल्टीप्लेयर ऑप्शन के साथ आते हैं। ऐसी कंडीशन मैं मौजूद सभी मोबाइल रिसीवर डिवाइसेज को एक कॉमन वाईफाई स्टेशन के साथ जोड़ दिया जाता है अब इसके अंदर दरअसल सारे मोबाइल या डिवाइसेज आपस में भी कम्युनिकेशन कर सकते हैं वह भी वाई फाई स्टेशन से कनेक्ट हुए बगैर। इससे कम्युनिकेशन की स्पीड कहीं गुना ज्यादा बढ़ जाती है। इस तरह के नेटवर्क को ही ऐड होक नेटवर्क कहते हैं।

3. Wi-Fi Direct

वाईफाई एलायंस कंपनी ने एक ऐसा सिस्टम डिवेलप किया जिसके अंदर वह डिवाइसेज जो आपस में वाईफाई की तरह जुड़ी हुई है अपना सारा डेटा फाइल्स के रूप में डायरेक्टली ट्रांसफर कर सकते हैं इसे ही वाईफाई डायरेक्ट कहा जाता है।

4. रेडियो स्पेक्ट्रम

स्पेक्ट्रम के बारे में हम पहले ही पढ़ चुके हैं। जितना ज्यादा बड़ा स्पेक्ट्रम होगा उतनी ही ज्यादा नेटवर्क एक्यूरेसी होगी। वाईफाई के लिए radio स्पेक्ट्रम की रेंज हर शहर, हर देश में अलग-अलग रखी जाती है। क्योंकि यह शहर या देश में रेडियो फ्रीक्वेंसी की वैल्यू का स्टैंडर्ड अलग अलग होता है जो वहां की मौजूदा एनवायरमेंटल कंडीशन को ध्यान में रखते हुए डिसाइड किया जाता है।

इसी वजह से डेवलप्ड कंट्रीज में इंटरनेट की स्पीड काफी ज्यादा होती है जबकि डेवलपिंग कंट्रीज में इंटरनेट की स्पीड डेवलप्ड कंट्रीज के मुकाबले कम होती है क्योंकि डेवलपिंग कंट्रीज में स्पेक्ट्रम की रेंज कम रखी जाती है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण स्पेक्ट्रम की रेंज बढ़ाने के लिए हाई लेवल के हार्डवेयर डिवाइसेज चाहिए होते हैं जो बहुत महंगे होते हैं इसी कारण हर जगह पर अच्छी बड़ी रेंज वाले स्पेक्ट्रम नहीं बनाए जा सकते है जिसके कारण इंटरनेट की स्पीड कम रहती है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि यह स्पेक्ट्रम या रेडियो वेव्स होती क्या है। इसका जवाब बहुत ही आसान है पुराने समय में हर घर में रेडियो होता था जैसे ही उस रेडियो के अंदर से सिग्नल ऑन करने के लिए चैनल को घुमाया जाता था अलग-अलग फ्रीक्वेंसी के चैनल चलने लग जाते थे आज के टाइम की अगर बात करें तो सबसे फेमस चैनल जैसे 92.7 या 95 एफएम तड़का यह सारे दरअसल radio-frequency के नाम है। जैसे ही हमारा रेडियो फ्रीक्वेंसी पर कनेक्ट होता है यह रेडियो उस स्टेशन से मिलने वाले सिगनल को पकड़ने लगता है अब यह सिग्नल जिन वेव्स के रूप में रेडियो स्टेशन से निकलकर हमारे वीडियो तक पहुंचता है उन्हीं में उसको रेडियो वेव्स कहते हैं।

Wi-Fi Performance Level

वाईफाई से मिलने वाले सिग्नल की रेंज या उसकी परफॉर्मेंस कैसी होगी यह कई सारे कारणों पर निर्भर करता है जैसे के फ्रिकवेंसी बैंड, रेडियो पावर आउटपुट, रिसीवर सेंसटिविटी, एंटीना गेन और एंटीना टाइप, सिग्नल मॉडुलेशन तकनीक, इसके अलावा रेडियो वेव्स प्रपोगेशन  किस डायरेक्शन में किया जा रहा है यह भी बहुत मायने रखता है।

वाईफाई के कुछ मौजूदा प्रमुख प्रकार: ब्लूटूथ, पर्सनल एरिया नेटवर्क, लोकल एरिया नेटवर्क, जिगबी प्रोटोकॉल

वाईफाई के इस्तेमाल में आने वाले कुछ प्रमुख हार्डवेयर

Antenna: यह आम एंटीना की तरह तो होता ही है पर यह एक्चुअली सिर्फ और सिर्फ वाईफाई कनेक्शन को कैच करने के काम आता है।

MIMO (multiple Input and multiple output device): यह एक तरह का एंटेना ही हे पर ये कई अलग अलग स्टेशंस के सिग्नल्स को एक बार में ही कैच कर सकता है और बाद में उन्हें अलग-अलग डायरेक्शन में मल्टीपल आउटपुट की तरह ब्रॉडकास्ट किया जा सकता है।

Router: जैसा कि हमने पढ़ा यह राऊटर दरअसल स्टेशन से निकलने वाले सिग्नल को बड़ा करके आगे की डायरेक्शन में भेजता है एक स्टेशन की चारो तरफ अगर राऊटर लगा दिया जाए तो स्टेशन से निकलने वाले वाईफाई स्पेक्ट्रम को हर दिशा में काफी दूरी तक आगे बढ़ा सकते हैं।

Access Point: यह डिवाइस दरअसल वाईफाई स्टेशन से वाईफाई सिगनल को जनरेट करती है। जिसे रिसीवर डिवाइसेज एक्सेप्ट करती है।

Wireless Adaptor: यह रिसीवर डिवाइस में लगा होता है जो फाईफाई सिग्नल्स को रिसीव करता है और इंटरनेट को चालू करता है

Bridge: जैसा इसका नाम है वही इसका काम भी है। इसमें दरअसल दो अलग-अलग वाईफाई स्टेशंस को जोड़ा जाता है यह दोनों स्टेशन मिलकर एक कॉमन स्टेशन की तरह काम कर सकते है।

Embedded Systems: mobile laptop computers के अलावा भी कई सारी डिवाइसेज होती है जो वाईफाई से जुड़कर डायरेक्ट अपना काम परफॉर्म कर सकती है। जैसा कि आपने बस के अंदर देखा होगा कंडक्टर एक छोटी सी डिवाइस साथ लेकर चलता है जिसमें वह आपसे डेस्टिनेशन पूछ कर डालता है और उसमें से एक छोटी सी स्लिप प्रिंट होकर के बाहर आ जाती है यह दिखने में बिल्कुल केलकुलेटर की तरह दिखता है इसमें छोटा सा प्रिंटर इनबिल्ट होता है यह दरअसल वाईफाई से कनेक्ट होकर ही चलता है।ऐसी कई और डिवाइसेज है जो दरअसल वाईफाई से जुड़कर काम करती है इन्हीं को एंबेडेड सिस्टम्स कहा जाता है क्योंकि इनके अंदर पहले ही वाईफाई एडॉप्टर और वाई फाई चिप लगा दी जाती है जो कि वायरलेस एरिया नेटवर्क के अंदर आते ही खुद ब खुद उस वाईफाई स्टेशन से कनेक्ट हो जाती है।

MAP और Multiple Access Points: यह हमने पहले पढ़ा था के हर वाई फाई एरिया के अंदर एक एक्सेस पॉइंट होता है जहां से रिसीवर डिवाइसेज उस वाईफाई स्टेशन से कनेक्ट हो सकती है लेकिन अगर एक्सेस पॉइंट एक ही हो और रिसीवर डिवाइसेज काफी ज्यादा हो तो सभी को सिग्नल मिलने में प्रॉब्लम हो सकती है इसीलिए कुछ वाईफाई नेटवर्क्स के अंदर एक से ज्यादा एक्सेस प्वाइंट बना दिए जाते हैं एक्सेस प्वाइंट एक तरह की हार्डवेयर डिवाइस होती है जो कि उस बड़े वाईफाई एरिया नेटवर्क के अंदर एक छोटे वाईफाई एरिया प्रोवाइडर की तरह काम करती है साधारण शब्दों में कहें तो एक बड़े पेड़ की जैसे छोटी-छोटी टहनियां होती है उसी तरह एक बड़े वाईफाई नेटवर्क एरिया के अंदर छोटे-छोटे एक्सेस पॉइंट बना दिए जाते हैं।

Piggybacking: यह दरअसल एक तरह से किसी और के वाईफाई नेटवर्क की चोरी होती है। इसमें हम हमारी रिसीवर डिवाइस से किसी और के वाईफाई स्टेशन को कनेक्ट कर सकते हैं और उसकी इजाजत के बगैर उसकी इंटरनेट को इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसा इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि Wi-Fi​ में मोजुद इंटरनेट रेडियो वेव्स के माध्यम से चलता है यह रेडियो वेव्स दीवारों के आर पार भी जा सकती हैं। इसलिए कोई अगर यह सोचता है कि मैं अपने घर में बैठकर वाईफाई चला रहा हूं मेरा वाई फाई मेरे अलावा कोई और एक्सेस नहीं कर सकता ऐसा संभव नहीं है क्योंकि आपके पास मौजूद दूसरे घर में कोई भी आपका वाईफाई कनेक्शन इस्तेमाल कर सकता है बिना आपकी परमिशन के। इसे ही पिगी बेकिंग कहा जाता है।

हालांकि वाईफाई को इतने छोटे कंटेंट में पूरी तरह से नहीं बताया जा सकता है फिर भी हमने पूरी कोशिश करी है आपको वाईफाई के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने की।

अभी तक तो हमने सिर्फ वाईफाई के बारे में टेक्निकल बात ही की पर अब हम उससे होने वाले कुछ नुकसान की भी बात कर लेते हैं।

वाईफाई से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुप्रभाव

wifi affects on health

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हालांकि सीधे सीधे तो कभी साबित नहीं हो पाया कि वाईफाई का इंसानी शरीर पर क्या नकारात्मक प्रभाव पड़ता है पर यह तो सबको पता है कि ज्यादा देर तक रेडियो वेव्स के कांटेक्ट में रहने से इंसान की शरीर में कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती है।

जहां तक हो सके छोटे बच्चों को वाईफाई हॉटस्पॉट से दूर रखना चाहिए क्योंकि यह उनके दिमाग के विकास पर असर डाल सकता है।

लम्बे समय तक वाईफाई हॉटस्पॉट के कनेक्शन में रहने वाले लोगों को चिड़चिड़ापन, गुस्सा, अनिद्रा, नकारात्मकता और थकान का अनुभव होता रहता है।

लेकिन यह हमें हाथों हाथ कभी नजर नहीं आता क्योंकि रेडियो वेव्स से होने वाले शारीरिक नुकसान को हमारा शरीर साथ के साथ फिर से भी कम करता रहता है लेकिन वक्त बढ़ने के साथ या उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है तभी ही रेडियो वेब सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है।

इन रेडियो वेव्स के प्रभाव को पढ़ने के लिए कई तरह के सर्वे अभी तक किए गए हैं पर किसी से भी सही रिजल्ट्स नहीं मिले हैं सभी यह बात स्वीकार करते हैं कि रेडियो वेव्स नुकसान पहुंचाती है पर आज के वक़्त में सबको टेक्नोलॉजी और इंटरनेट की ऐसी आदत पद गई है के कोई भी इसे बंद नहीं होने देना चाहता इसलिए खुलेआम इतना चल रहा है हम खाली इतना कहना चाह रहे हैं कि हर तरह की टेक्नोलॉजी का पूरा इस्तेमाल करना तो चाहिए पर उसकी आदत इतनी ज्यादा नहीं करनी चाहिए कि वह शरीर को नुकसान पहुंचाने लग जाए उसी तरह से जहां तक संभव हो सके घर में या ऑफिस में या किसी भी जगह पर इंटरनेट कनेक्शन के लिए मीडिया केबल का इस्तेमाल किया जाए। इसके दो फायदे होंगे एक तो किसी को भी किसी तरह का शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचेगा दूसरा अगर आपके यहां पर वायरलेस नेटवर्क अवेलेबल है तो हम मुश्किल से 50% ही इस्तेमाल करते हैं बाकी सारा बेकार हो जाता है लेकिन केबल मीडिया के अंडर ऐसी कोई समस्या नहीं होती है इसी वजह से केबल मीडिया के अंदर इंटरनेट की स्पीड कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है।

जहां तक हो सके मोबाइल की जगह लैंडलाइन का इस्तेमाल ज्यादा किया जाना चाहिए और मोबाइल का इस्तेमाल तभी किया जाए जब बहुत ज्यादा जरूरी हो आम तौर पर देखा जाता है कि आज के समय में बिना किसी वजह के भी मोबाइल इस्तेमाल करते हैं छोटी-छोटी बात पर कॉल करने लग जाते हैं मैसेजिंग करते हैं व्हाट्सएप करते हैं इंटरनेट एक्सेस करते हैं वीडियो गेम्स खेलते हैं यह सभी चीजें सब वायरलेस नेटवर्क पर ही चलती है और यह वायरलेस नेटवर्क वेव्स के रूप में हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं।

साधारण शब्दों में कहें तो टेक्नोलॉजी और इंटरनेट का इस्तेमाल जरूर कीजिए पर वही कोई जहां बहुत ज्यादा जरुरी हो तो ताकि इसके नेगेटिव इफैक्ट्स को कम किया जा सके।

Alternatives

वाईफाई इस्तेमाल ना करें तो फिर क्या इस्तेमाल करें? कितनी दूरी तक के लिए इंटरनेट सिग्नल को ब्रॉडकास्ट करने हैं कम दूरी है ज्यादा दूरी इस हिसाब से कई अल्टरनेटिव मौजूद है जैसे कि कम दूरी के नेटवर्क के लिए हम ब्लूटूथ इस्तेमाल कर सकते हैं इसके अलावा जो आजकल सबसे ज्यादा चल रहा है वही Zigbee प्रोटोकॉल इंटरनेट यूज करने की जगह अगर कॉल करके काम संभव हो तो कॉल पर बात कर लेनी चाहिए ना कि व्हाट्सएप पर चैटिंग करनी चाहिए।

आशा करते हैं आपको यह टॉपिक पसंद आया होगा इसके अंदर मौजूद किसी भी विषय पर अगर आपको ज्यादा जानकारी चाहिए या इस सारे विषय पर आपकी क्या राय है यह हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा।

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