ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है? – Operating System in Hindi

21वी शताब्दी, इतिहास के पन्नों में दर्ज होने वाली पहली ऐसी शताब्दी है, जिसने मानवता के इतिहास में सबसे ज्यादा बदलाव देखे हैं। लकड़ी के पहियों से चलने वाली बेलगाड़ी से लेकर के स्पेस एक्स जेसे अंतरिक्ष में चलने वाले विमानों ​तक, अनंत तक फैले ब्रह्मांड से लेकर एक अलग ही दुनिया का निर्माण करने वाले परमाणु तक और भी ना जाने क्या क्या अविष्कार और खोजें ऐसी हुईं हैं जिन्होंने मानव के जीवन को बदल के रख दिया है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि इन सब का मूलभूत आधार क्या है।

Computer एक ऐसी मशीन जिसने मानवीय जीवन और इतिहास को बदल कर रख दिया है। कंप्यूटर के बारे में तो सभी जानते हैं इसके बारे में जितना बताया जाए उतना कम है आज यह हर एक क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। इसके बगैर तो दुनिया का चलना लगभग नामुमकिन हो चुका है। लेकिन सारी दुनिया को चलाने वाला यह कंप्यूटर खुद किससे चलता है या यूं कहें कंट्रोल होता है।

जी हां आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे सॉफ्टवेयर की जो कि कंप्यूटर को पूरी तरह से कंट्रोल करता है ताकि हम कंप्यूटर को बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकें। और वह सॉफ्टवेयर है Operating System – ऑपरेटिंग सिस्टम को संक्षिप्त में OS भी कहा जाता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है? – Operating System in Hindi

कंप्यूटर एक हार्डवेयर डिवाइस है जिसमें कई सारे सर्किट्स​ होते हैं। पर उन सभी को कंट्रोल करने के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम जरूरी होता है जैसा नाम से ही पता लगता है ऑपरेट करने वाला सिस्टम। Operating System कंप्यूटर के अंदर मौजूद हर एक सर्किट हर एक डिवाइस को एक दूसरे से जोड़ता है उनके बीच में कम्युनिकेशन बनाता है ताकि सभी मिलकर एक यूनिट की तरह काम कर सकें।

कंप्यूटर में कई सारी तरह के काम किए जाते हैं हरेक काम के लिए एक अलग सॉफ्टवेयर काम में आता है और जब इतने सारे सॉफ्टवेयर​ एक ही मशीन में हो तो उन सबका एक साथ एक दूसरे के साथ तालमेल बैठाकर चलना बहुत जरूरी है और यही काम ऑपरेटिंग सिस्टम करता है। हम इसे कुछ इस तरह समझ सकते हैं कि जैसे कि एक घर में कई सारे सदस्य रहते हैं उस घर का सबसे बड़ा मुखिया उस घर के सभी सदस्यों को जोड कर रखता है, बाकी सब के लिए डिसीजन लेने का काम करता है। ताकि ताकि सभी सदस्यों में आपसी प्रेमभाव बना रहे, किसी को बाकी किसी से भी किसी तरह की शिकायत ना रहे। बस ऑपरेटिंग सिस्टम भी यही करता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है – Operating System in Hindi

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ऑपरेटिंग सिस्टम की तकनीकी परिभाषा:

Operating System एक सिस्टम सॉफ्टवेयर होता है जो कंप्यूटर में मौजूद सभी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के बीच में कम्युनिकेशन बनाए रखता है ताकि कंप्यूटर सारे काम सही तरह से कर सकें।

ऑपरेटिंग सिस्टम का इतिहास

शुरुआत में जो कंप्यूटर बनाए गए थे उनमें कोई ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं होता था, इस कारण यह कंप्यूटर कुछ सिलेक्टेड काम ही कर सकते थे जिनके लिए इनको बनाया जाता था जैसे कि कैलकुलेशंस करने का, या पंच कार्ड प्रिंट करने का। एक ही कंप्यूटर यह दोनों काम भी एक साथ नहीं कर सकता था। इन दोनों अलग-अलग कामों के लिए दो अलग-अलग कंप्यूटर चाहिए होते थे, और जैसा कि हम सबको पता है शुरुआत के कंप्यूटर खुद एक कमरे की साइज के होते थे तो अगर दो कामों के लिए दो अलग-अलग कंप्यूटर की जरूरत पड़े तो यह कितना ज्यादा मुसीबत भरा हो सकता है। इसीलिए ऐसे तकनीकी चमत्कार की कोशिश की जा रही थी जो एक ही कंप्यूटर को अलग-अलग काम करने की काबिलियत दे सके और यहीं से जन्म हुआ ऑपरेटिंग सिस्टम का।

सन 1940 के शुरुआत में कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम्स से ज्यादा कुछ नहीं था, जिसके अंदर किसी भी तरह का ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं होता था, बल्कि इन्हें कुछ फिक्स प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर की मदद से चलाया जाता था। सॉफ्टवेयर से ज्यादा हार्डवेयर डिवाइसेज का ज्यादा इस्तेमाल होता था। इसके लिए इलेक्ट्रीक बोर्ड के ऊपर जंपर वायर्स का इस्तेमाल किया जाता था। अलग-अलग जंपर वायर को अलग-अलग टाइम पर पावर सप्लाई देने पर वह अलग-अलग फंक्शन परफॉर्म करते थे। इससे शुरुआती कंप्यूटर चलते थे। पर वैसे भी उस समय कंप्यूटर आम जनता के लिए नहीं बल्कि बहुत ही खास तरह के विभागों के लिए जैसे के आर्मी के लिए इस्तेमाल होते थे। हम इसे साधारण तरीके से समझ सकते हैं कि 1940 में आपरेटिंग सिस्टम जेसा कोई सिस्टम सॉफ्टवेयर या एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर नहीं था बल्कि पूरी तरह से हार्डवेयर का इस्तेमाल करके कंप्यूटर को चलाया जाता था।

1950 में एक तरह से हम कह सकते हैं कि ऑपरेटिंग सिस्टम का शुरुआती वर्जन लाया गया था जो कि “रेजिडेंट मॉनिटर फंक्शन” परफॉर्म करता था यानी कि एक साथ कई सारे फंक्शन परफॉर्म करना ताकि किसी भी प्रोग्राम की स्पीड बढ़ सकें। हालांकि यह ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर हार्डवेयर के बजाय कंप्यूटर में चलने वाले प्रोग्राम के लिए ज्यादा डेडीकेटेड होता था। पर यह ऑपरेटिंग सिस्टम एक बार में एक ही प्रोग्राम चला सकता था। यह आपरेटिंग सिस्टम टेप स्टोरेज के काम आता था। (टेप से यहां मतलब पंच कार्ड से है।)

हालांकि कई सारी कंपनियों ने इस समय तक अपने खुद की मशीनों के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम बनाने की कोशिश करी थी तो इनमें से सबसे ज्यादा सफलता मिली जनरल मोटर्स रिसर्च लैब को जिन्होंने अपने सिस्टम IBM 701 के लिए पहला ऑपरेटिंग सिस्टम लांच किया था।

1960 के अंदर ऑपरेटिंग सिस्टम में नई तकनीकी शामिल की गई। जैसे कि डिस्क ऑपरेटिंग। यहां पर डिस्क से मतलब कंप्यूटर में पहले से मौजूद मेमोरी है जो की कंप्यूटर डिवाइस में सेव करके रखी जाती थी जिस वजह से अब ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर में मौजूद मेमोरी को इस्तेमाल कर सकते थे और एक साथ कई साफ्टवेयर को चला सकते थे पर तब भी आपरेटिंग सिस्टम की स्पीड काफी कम थी और ज्यादा से ज्यादा दो या तीन प्रोग्राम ही एक साथ चल सकते थे। इसी समय में यूनिक्स ओ एस का पहला वर्जन डिवेलप किया गया था।

आज के समय अगर किसी को भी हम ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में पूछे तो सबसे पहला नाम माइक्रोसॉफ्ट विंडो का निकल कर आता है लेकिन माइक्रोसॉफ्ट विंडोस ने अपना पहला ऑपरेटिंग सिस्टम 1981 में लांच किया था जिसका नाम DOS यानी की डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम था।

आज के समय में हम जो ऑपरेटिंग सिस्टम देखते हैं वह तो बहुत ही ज्यादा एडवांस व बहुत ही ज्यादा सरल है इस्तेमाल करने के लिए। शुरुआत में ऐसा नहीं था एक ब्लैक कलर की स्क्रीन होती है जिसे कंसोल बोला जाता है उसके ऊपर कमांड्स लिखे जाते थे और इससे ऑपरेटिंग सिस्टम चलता था अब जरा सोचिए आपको कुछ भी करने के लिए पहले कमांड याद करने होंगे या फिर डायरी में से कमांड​ देखने होंगे, जब आप कंसोल पर कमांड टाइप करेंगे तो काम होगा। लेकिन यह अपने आप में कितना ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड प्रोसेस है इसीलिए ऑपरेटिंग सिस्टम में लगातार बदलाव किए गए और अब कहीं जाकर के हम जो ऑपरेटिंग सिस्टम देखते हैं वह अस्तित्व में आया। आज के समय में इस्तेमाल होने वाले ऑपरेटिंग सिस्टम जी यू आई (GUI ) बेस्ड ऑपरेटिंग सिस्टम होते हैं यहां जी यू आई का पूरा मतलब है ग्राफिकल यूजर इंटरफेस।

साधारण शब्दों में कहें तो हर चीज के लिए आइकन बना होता है आइकन पर क्लिक कीजिए और उसका आइकन के पीछे का पूरा प्रोग्राम खुद-ब-खुद चल जाएगा व आपको जो रिजल्ट चाहिए वह आ जाएगा। आज के समय में हम जो आपरेटिंग सिस्टम देखते हैं वह पूरी तरह से आइकन बेस्ड है चाहे वह कंप्यूटर या लैपटॉप की स्क्रीन पर दिखने वाला माय कंप्यूटर, रीसाइकिल बिन, माय नेटवर्क, या किसी और सॉफ्टवेयर का शॉर्टकट आइकन हो या फिर मोबाइल स्क्रीन पर दिखने वाले एप्लीकेशंस के आइकन, ईन आईकन पर क्लिक करने से ही इन से जुड़े​ फंक्शन​ काम करने लग जाते है।

यह जी यु आई (GUI) बेस्ड ऑपरेटिंग सिस्टम 1985 में अस्तित्व में आया था। हालांकि इसे भी माइक्रोसॉफ्ट ने​ हीं लांच किया था इसे नाम दिया था एमएस डॉस, हालांकि यह ऑपरेटिंग सिस्टम पूरी तरह से जी यू आई बेस्ड नहीं था, पर यहां से शुरूआत​ हो चुकी थी। जल्द ही Microsoft ने पूरी तरह से जी यू आई बेस्ड आपरेटिंग सिस्टम रिलीज कर दिया, जिसे Microsoft Windows के नाम से पहचाना जाता है।

जैसा कि हमने पढ़ा शुरुआत में ऑपरेटिंग सिस्टम hardware बेस्ड​ हुआ करते थे। जैसे-जैसे प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेस का आविष्कार होता गया वैसे-वैसे ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर बेस्ड होने लग गए।

आपरेटिंग सिस्टम का आविष्कार 1940 में हुआ था तब से लेकर अभी तक इसके कई तरह के वर्जन लॉन्च हो चुके हैं। यहां तक कि माइक्रोसॉफ्ट विंडोज के भी हर थोड़े समय में नए वर्जन आ जाते हैं। जैसे window 96, 2000, Windows XP, Windows Vista, Windows 10 जैसे कई सारे वर्जन अभी तक आ चुके हैं।

Operating System के Components

आज के समय में जो ऑपरेटिंग सिस्टम मौजूद है वह अपने आप में एक कम्पलीट सॉफ्टवेयर नहीं है, बल्कि वो खुद कई सारे छोटे-छोटे सॉफ्टवेयर का ग्रुप होता है इसके अंदर हार्डवेयर डिवाइसेज भी शामिल होती है और सॉफ्टवेयर भी शामिल होता है इसीलिए एक ऑपरेटिंग सिस्टम को उसके बेसिक कॉम्पोनेंट्स में बांट कर समझना ज्यादा आसान रहता है जोकि निम्नलिखित हैं।

1) Kernal
1.1) Program Execution
1.2) Interrupts
1.3) Modes
1.4) Memory Management
1.5) Virtual Memory
1.6) Multitasking
1.7) Disk Access and File Systems
1.8) Device Drivers

2) Networking
3) Security
4) User Interface
4.1) Graphical User Interface

Operating System के Components

Kernal

कर्नल ऑपरेटिंग सिस्टम का वह हिस्सा है जो सबसे ज्यादा बाकी सारे कॉम्पोनेंट्स, हार्डवेयर डिवाइसेज और कंप्युटर में मौजूद सारे सॉफ्टवेयर​ पर कंट्रोल करता है। कर्नल ही डिसाइड करता है कि कंप्यूटर के अंदर मौजूद किसी भी प्रोग्राम को कितने समय के लिए चलाया जा सकता है, कौन सा हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर कब किसे एलोकेट होगा। साधारण शब्दों में कर्नल कंप्यूटर में मौजूूद रिसोर्सेज को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने के लिए टाइम शेयरिंग करता है।

Program Execution: कंप्यूटर सिर्फ हार्डवेयर का नहीं बना होता है बल्कि उसके अंदर सॉफ्टवेयर भी होते हैं यह सॉफ्टवेयर या हार्डवेयर आपस में मिलकर काम करते हैं। जब इतने सारे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर कंप्यूटर में मौजूद हो तो सही हार्डवेयर के लिए सही सॉफ्टवेयर चलना बहुत जरूरी है यही काम प्रोग्राम एग्जीक्यूशन कहलाता है।

जब भी हम कंप्यूटर में या मोबाइल में कोई पेनड्राइव लगाते हैं, तो उस पेनड्राइव का सॉफ्टवेयर खुद-ब-खुद उस सिस्टम में इंस्टॉल होने लगता है यही प्रोग्राम एग्जीक्यूशन का सबसे बेहतर उदाहरण है।

Interrupts: Interrupt का हिंदी में मतलब होता है बाधा डालना। जब ऑपरेटिंग सिस्टम में कई सारे प्रोग्राम एक साथ चल रहे हो तो जरूरत होने पर किसी प्रोग्राम को रोकना, एक प्रोग्राम से दूसरे प्रोग्राम में स्विच करना यह सब जिन सॉफ्टवेयर के थ्रू होता है उन्हें इंटरप्ट कहा जाता है।

Modes: आज के समय में ऑपरेटिंग सिस्टम इतने पावरफुल हो चुके हैं कि इन्हें पूरी तरह से बिल्कुल सही तरह से इस्तेमाल करना किसी एक यूजर के बस की बात नहीं होती इसलिए ऑपरेटिंग सिस्टम में अलग-अलग मोड्स दिए जाते हैं। मुख्यतया दो मोड होते हैं पहला user mode दूसरा supervisor mode।

user mode: एक युजर किस हद तक operating system को इस्तेमाल कर सकता है। उसे कितनी परमीशंस मिली हुई है यह सब यूजर मोड डिसाइड करता है।

supervisor mode​: कंप्यूटर ऑन करने से लेकर ऑफ करने तक बिना हमारी जानकारी के भी कंप्यूटर में कई सारे ऑपरेशंस चलते रहते हैं इनको कंट्रोल करने के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम के पास सुपरवाइजर मोड होता है।

Memory management: कंप्यूटर में सारे प्रोग्राम सारे डेटा उसकी मेमोरी में सेव रहते हैं, ऑपरेटिंग सिस्टम से रिलेटेड सारा डेटा भी मेमोरी में सेव रहता है। जब भी कोई प्रोग्राम रन करता है या चलता है तो उसे मेमोरी स्पेस चाहिए होती है इसलिए हर प्रोग्राम के शुरू होने से पहले उसे मेमोरी स्पेस एलोकेट कर दी जाती है। कोई भी प्रोग्राम किसी और दूसरे प्रोग्राम को मिली हुई मेमोरी को इस्तेमाल ना करें इसी का ध्यान मेमोरी मैनेजमेंट में रखा जाता है।

Virtual memory: जैसा कि हमने पढ़ा है कंप्यूटर प्रोग्राम को मेमोरी स्पेस एलोकेट की जाती है जरा सोचिए प्रोग्राम का काम खत्म हो जाने के बाद भी उसके पास में मेमोरी स्पेस सुरक्षित रहती है, जबकि यही मेमोरी दुसरे प्रोग्राम में काम में आ सकती है। इसीलिए जब भी किसी प्रोग्राम को मेमोरी स्पेस एलोकेट की जाती है तो वह टेंपरेरी तौर पर होती है प्रोग्राम खत्म होने पर मेमोरी स्पेस उस प्रोग्राम से वापस ले ली जाती है यही मेमोरी स्पेस वर्चुअल मेमोरी कहलाता है।

Multitasking: अब जबकि हम यह जान चुके हैं कि कंप्यूटर में कई सारे सॉफ्टवेयर​ एक साथ चलते हैं जबकि प्रोसेसर तो एक ही है तो एक ही प्रोसेसर​ इतने सारे सॉफ्टवेयर को एक साथ कैसे चलाता है यह काम ऑपरेटिंग सिस्टम तय करता है ऑपरेटिंग सिस्टम प्रोसेसर को टाइम एलोकेशन देता है ताकि एक कंपलीट सर्कल में प्रोसेसर चलने वाले सारे प्रोग्राम को थोड़ा थोड़ा वक्त देता है लेकिन यह सब इतनी स्पीड से होता है कि हमें पता भी नहीं लगता कि हर एक एप्लीकेशन थोड़ा रुक कर चल रही है हमें सारी ही एप्लीकेशन एक साथ चलती हुई नजर आती है जैसे कि कंप्युटर चालु करने के बाद में हमने उसमें म्यूजिक चला दिया और साइड में छोटी सी मूवी भी चला दी पास में दो-तीन सॉफ्टवेयर भी चल रहे है और हम साथ के साथ वीडियो गेम भी खेल रहें हैं । तो इतने सारे एप्लीकेशन कंप्यूटर पर एक साथ चल रहे हैं और ऑपरेटिंग सिस्टम इन सब को एक साथ कंट्रोल करता है इसे ही मल्टीटास्किंग कहते हैं।

Disk Access and file systems: आज के समय में कंप्यूटर में सारा डाटा हार्ड डिस्क में स्टोर रहता है। तो जब भी कोई सॉफ्टवेयर या एप्लीकेशन चालू करनी होती है तो उससे जुड़ा सारा डाटा हार्ड​ डिस्क से कलेक्ट करना पड़ता है और यही काम ऑपरेटिंग सिस्टम करता है कि कौन सा सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन कब हार्ड डिस्क को इस्तेमाल कर सकती है।

Device drivers: अगर आपने कभी कंप्यूटर लैपटॉप या मोबाइल में पेनड्राइव लगाई होगी तो स्क्रीन पर एक मैसेज आया होगा जिसमें दिख रहा होगा कि डिवाइस ड्राइवर इंस्टॉल हो रहा है यह डिवाइस ड्राइवर दरअसल उस हार्डवेयर डिवाइस का एक सॉफ्टवेयर होता है जो उस डिवाइस को कंप्यूटर में जोड़ देता है इन सब डिवाइसेज और उनके driver को कंप्यूटर की मेमोरी में सेव करके रखने का काम ऑपरेटिंग सिस्टम करता है

Networking

इंटरनेट से तो हम सभी परिचित हैं कोई भी कंप्यूटर आसानी से इंटरनेट से जुड़ जाता है जब दो कंप्यूटर को आपस में जोड़ा जाता है इसे ही नेटवर्किंग कहते हैं कंप्यूटर को नेटवर्क में जोड़ने का काम ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है

Security

कंप्यूटर में हम कई तरह के हार्डवेयर डिवाइसेज लगाते और हटाते हैं इसके अलावा कंप्यूटर को इंटरनेट से भी जोड़ते हैं कई सारे नए सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करते हैं इन सबके साथ कंप्यूटर में अनवांटेड प्रोग्राम्स भी आ सकते हैं जिन्हें साधारण भाषा में वायरस कहा जाता है एक ऑपरेटिंग सिस्टम ऐसे वायरस के प्रोग्राम को आसानी से पहचान लेता है और उसे दूर कर देता है यही कारण है कि कभी-कभी कोई सॉफ्टवेयर हमारे कंप्यूटर में इंस्टॉल नहीं हो पाता है या कोई स्पेशल वेबसाइट हमारे कंप्यूटर में ओपन नहीं हो पाती है क्योंकि कंप्यूटर का ऑपरेटिंग सिस्टम उसे रोक देता है।

User Interface

आज के समय में कंप्यूटर को ऑपरेट करना बहुत आसान हो चुका है क्योंकि कंप्यूटर जी यू आई बेस्ड हो चुके हैं यानी कि अब हमें कमांड देने की जगह आइकन पर क्लिक करना होता है कोई भी यूजर कंप्यूटर में किस हद तक जाकर के सॉफ्टवेयर इंस्टॉल कर सकता है मौजूदा सॉफ्टवेयर को किस तरह से इस्तेमाल कर सकता है और हार्डवेयर में या कंप्यूटर के कॉन्फ़िगरेशन में कितना बदलाव कर सकता है और यह सारे बदलाव किस तरह से कर सकता है, साथ ही किस तरह से कंप्यूटर को ऑपरेट कर सकता है, यह सारे ऑप्शन यूजर को ऑपरेटिंग सिस्टम के जरिए ही मिलते हैं इसे ही यूजर इंटरफेस कहते हैं।

Graphical User Interface​: इसे जी यू आई भी कहते हैं। पहले के समय में कंप्यूटर की स्क्रीन पर सिर्फ ब्लैक स्क्रीन दिखाई देती थी और हम कीबोर्ड की मदद से कमांड टाइप करते थे वह कंप्यूटर इन कमांड्स को ऑपरेट करता था पर इतने सारे कमांड को याद रखना सबके बस की बात नहीं थी इसीलिए धीरे-धीरे इन कमांड को इमेजेस के रूप में बनाया जाने लगा, इस वजह से अब हमें कमांड्स लिखने के बजाय इन इमेजेस को क्लिक करना होता था और वह कमांड अपना काम शुरू कर देता था।

इन इमेजेस को आइकन कहा जाता है। जैसे कि अगर पहले के समय की बात करें तो माय कंप्यूटर को ओपन करने के लिए हमें कमांड प्रॉम्प्ट में माय कंप्यूटर का कमांड लिखना होता था पर अब आज के समय में स्क्रीन पर माय कंप्यूटर का आइकन होता है उस पर क्लिक करते ही माय कंप्यूटर ओपन हो जाता है इसी सिस्टम को ग्राफिकल यूजर इंटरफेस कहते हैं साधारण शब्दों में सभी तरह के कमांड को इमेजेस में बदल दिया गया है। जिस कमांड को चलाना है, उसके इमेज पर क्लिक करने पर वह प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर या कमांड खुद ही एग्जीक्यूट हो जाता है और यूजर को इन सब बेकग्राऊंड में चलने वाले प्रोग्राम एक्जेक्युशन का पता भी नहीं चलता।

ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार

हर हार्डवेयर की रिक्वायरमेंट अलग-अलग होती है इसीलिए ऑपरेटिंग सिस्टम भी कई अलग-अलग प्रकार के होते हैं। कुछ प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम निम्नलिखित होते हैं:

Single Tasking and Multitasking

कुछ ऑपरेटिंग सिस्टम एक बार में एक ही प्रोग्राम चला सकते है, जबकि कुछ एक बार में कई सारे प्रोग्राम्स चला सकते हे। ये सुब मौजूद हार्डवेयर के ऊपर और काम की जरुरत के अनुसार तय होता है। तो जो ऑपरेटिंग सिस्टम एक बार में एक ही काम करते है उन्हें ही सिंगल टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम कहते है, ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम्स काफी बड़े स्तर के प्रोग्राम एक्सेक्यूट करते है। जैसे की हैवी ड्यूटी मेडिकल मशीनरीज या कंस्ट्रक्शन मशीनरीज में मौजूद ऑपरेटिंग सिस्टम्स।

जबकि जो ऑपरेटिंग सिस्टम्स एक बार में काफी सारे प्रोग्राम्स चला सकते हे उन्हें ही मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम्स कहते है। ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम्स आम तौर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल किये जाते है।  जैसे की डेस्कटॉप या लैपटॉप कम्प्यूटर्स या मोबाइल के ऑपरेटिंग सिस्टम्स।

Single User and Multi User

अगर ऑपरेटिंग सिस्टम को सिर्फ एक ही यूजर इस्तेमाल कर सकता हे तो ये सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम्स कहलाते है। इन्हे पासवर्ड प्रोटेक्टेड कर के रखा जाता है।

जबकि जिन ऑपरेटिंग सिस्टम्स को काफी सारे यूजर इस्तेमाल कर सकते है, वही मल्टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम्स कहलाते है, जैसे की नार्मल कम्प्यूटर्स। इनमे गेस्ट अकाउंट यूजर के लिए कोई पासवर्ड नहीं होता है।

Distributed

इस तरह के सेटअप में कई सारे अलग अलग कंप्यूटर में मौजूद अलग अलग ऑपरेटिंग सिस्टम्स एक कंबाइंड सिस्टम की तरह ऑपरेशन्स परफॉर्म करते है।

Templated

ये थोड़ा सा काम्प्लेक्स प्रोसेस है।  इसमें ऑपरेटिंग सिस्टम खुद की एक वर्चुअल मशीन इमेज बनाता है, जिसे किसी भी दूर मौजूद सिस्टम पर भी चलाया जा सकता है।

Embedded

डिजिटल devices को चलाने के लिए इस तरह का ऑपरेटिंग सिस्टम काम में आता है। जैसे की ट्रेवल बस में टिकट काटने की मशीन। इन्हे बहुत ही कम रिसोर्सेज चाहिए होते हे।

Real Time

कभी कोई टास्क परफॉर्म करने पर एक से ज्यादा आउटपुट आये तो हर आउटपुट के हिसाब से प्रोग्राम के आगे के रिजल्ट्स बदल जाते है, इस तरह के सिस्टम्स को कण्ट्रोल करने के लिए रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम्स काम आते है। ये मौजूदा रेक्विरेमेंट के हिसाब से अपने प्रोसेसिंग का तरीका बदल देते है। जैसे की सिक्योरिटी डिवाइस में काम आने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम।

LIBRARY

जब हार्डवेयर डिवाइस जैसे की कंप्यूटर तो एक ही हो पर उसमे लगातार कई अलग अलग तरह के फंक्शन्स परफॉर्म करने हो तो हर फंक्शन के लिए एक पूरा कमांड इंस्ट्रक्शन मैन्युअल एक प्रोग्राम की तरह कंप्यूटर या हार्डवेयर डिवाइस में सेव कर दिया जाता है। अब जब जिस प्रोग्राम या फंक्शन के जरुरत हो तब उसे ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ जोड़ दिया जाता है, और हमारा कंप्यूटर या हार्डवरे डिवाइस चुने हुए प्रोग्राम की तरह चलने लग जाता है।

कुछ प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम्स

वैसे तो कई तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम्स मौजूद हे पर इनमे से कुछ ज्यादा इस्तेमाल किये जाते हे और ये लोगो के बिच में बहुत फेमस भी है। ये निम्नलिखित हे:

विंडोज (WINDOWS)

इसे माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी ने बनाया है, यह GUI तकनीक पर काम करता है। यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता हेक्यूंकि इसे इस तरह बनाया गया हैं के इसे समझना और इस्तेमाल करना बहुत आसान है। इसके कई सारे वर्जन्स मौजूद है। जैसे की विंडोज 8, विंडोज 10.

विंडोज (WINDOWS)

लिनक्स या LINUX

यह विंडोज के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। यह ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर हे यानि के यह फ्री में मिलता है, पर कई मायनो में यह विंडोज से थोड़ा सा बेहतर हे, जैसे की इसमें वायरस नहीं लगते हे और इसे अपने हिसाब से मॉडिफाई भी कर सकते है।  इसके भी अलग अलग वर्जन्स मौजूद हे जैसे की UBUNTU, Kali Linux आदि।

लिनक्स या LINUX

ANDROID

शायद ही कोई ऐसा होगा जो एंड्राइड को नहीं जानता होगा, हर स्मार्टफोन में यही ऑपरेटिंग सिस्टम पाया जाता हे, जो हमारे फ़ोन्स को इतना स्मार्ट बनाता है। इसके तो कई सारे वर्जन्स मौजूद है।

ANDROID Operating SystemMAC OS

इसे APPLE कंपनी ने बनाया है, जो इसी कंपनी के हार्डवेयर डिजिटल डिवाइस में इन्सटाल्ड आता है।

MAC OS
UNIX

ये पूरी तरह से UNIX कोड्स से बना हुआ हे और ये भी ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर है।

UNIX

हम आशा करते हे के ऊपर दी हुई जानकारी आपके काम की होगी। ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है इस बारे में कोई सवाल हो तो कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है।

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