वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) क्या है? – World Wide Web (WWW) in Hindi

आज हम जिस विषय पर बात करने वाले हैं, शायद ही कोई ऐसा होगा जो इस विषय से अनभिज्ञ होगा। इंटरनेट का आविष्कार जिसने दुनिया को बदल कर रख दिया। दुनिया के किसी भी कोने में मौजूद किसी भी तरह की जानकारी हम दुनिया के किसी भी दूसरे कोने से बैठे-बैठे कुछ ही मिनटों में हासिल कर सकते हैं, और यही नहीं उस जानकारी में हम किसी भी तरह का बदलाव भी यहीं बैठे बैठे कर सकते हैं। एक वक्त था जब यह सब सुनने में कोरी कल्पना लगता था पर 1960 में जब पहली बार इंटरनेट का आविष्कार हुआ उसके बाद से यह कल्पना धीरे धीरे वास्तविकता में बदलती गई।

पर यह सब पढ़ने में और सुनने में जितना आसान लगता है वाकई में उतना आसान नहीं था, क्योंकि इंटरनेट शुरुआत में इतना साधारण या इतना आसान नहीं था, बल्कि यह एक ऐसा कम्युनिकेशन मीडियम था जिससे कनेक्ट होना भी अपने आप में बहुत डिफिकल्ट टास्क था, क्योंकि आज के समय में इंटरनेट चालू करने पर हमें स्क्रीन पर रंग-बिरंगे आइकन, वॉलपेपर, डिजाइनर पेजेस नजर आते हैं पर शुरुआत में सिर्फ और सिर्फ एक ब्लैक कलर की स्क्रीन नजर आती थी जिसे कंसोल कहा जाता है। इस कंसोल पर कुछ कोडस लिखने होते थे। यह कोड लिखने पर वह डिवाइस (आमतौर पर यह कंप्यूटर ही होते थे) इंटरनेट से कनेक्ट हो जाता था, लेकिन यहां पर काम खत्म नहीं होता था, क्योंकि अभी तक तो सिर्फ हमारा ही सिस्टम इंटरनेट से कनेक्ट हुआ था। अब हमें जिस दूसरे सिस्टम या डिवाइस से किसी भी तरह का डाटा या इंफॉर्मेशन चाहिए या उसे किसी भी तरह की इनफार्मेशन भेजनी है, उसे भी इंटरनेट से कनेक्ट करवाना पड़ता था, और उसके बाद में हमारी डिवाइस से उस दूसरी होस्ट डिवाइस तक पहले एक टेंपरेरी कम्युनिकेशन लिंक स्थापित करना पड़ता था।

यह सब बहुत ज्यादा समय खाने वाला काम था और जब होस्ट कंप्यूटर से हम डाटा मंगाते थे, या होस्ट कंप्यूटर पर कोई रिक्वेस्ट भेजते थे, तो वह भी कोड की भाषा में होता था। भूलियेगा मत इस समय पीछे सिस्टम में ब्लैक कलर की कंसोल स्क्रीन चल रही होती थी। यानी कि कोई आइटम नहीं, कोई इमेज नहीं, कोई ग्राफिक्स नहीं, हर चीज के लिए सिर्फ और सिर्फ कोडस टाइप करने होते थे।

वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) क्या है? – World Wide Web (WWW) in Hindi

वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) क्या है - World Wide Web (WWW) in Hindi

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जरा सोचिए शुरुआत में इंटरनेट को इस्तेमाल करना कितना ज्यादा मुश्किल भरा काम होता था, लेकिन जैसे-जैसे इंटरनेट की पहुंच आम लोगों तक होने लगी वैसे वैसे कई ऐसी संस्थाएं और कई ऐसे इंसान निकल कर आगे आए जिन्होंने इंटरनेट का इस्तेमाल ज्यादा आसान करने के लिए कई नई तकनीक खोजी। इन्हीं में से एक तकनीक हैं डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू (WWW) जिसकी फुल फॉर्म होती है “वर्ल्ड वाइड वेब” (World Wide Web)। हिंदी में हम इसे कह सकते हैं “विश्वव्यापी जाल”। यहां पर जाल से मतलब इंटरनेट के महाजाल से है।

कई लोग हमेशा इसी कन्फ्यूजन में रहते हैं कि इंटरनेट और world-wide-web दोनों एक ही चीज है पर हकीकत में ऐसा नहीं है। इंटरनेट एक प्लेटफार्म की तरह है जो कि दुनिया भर के कंप्यूटर्स को या डिजिटल डिवाइसेज को आपस में जोड़ने का काम करता है, लेकिन सिर्फ इंटरनेट से कनेक्ट होना ही काफी नहीं है बल्कि इंटरनेट की मदद से इन सब डिवाइसेज के बीच में कम्युनिकेशन होना भी जरूरी है। लेकिन यह सारा काम इंटरनेट अकेले नहीं कर सकता है इसके लिए कुछ खास तरह के सॉफ्टवेयर या एप्लीकेशंस की जरूरत पड़ती है और डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू या वर्ल्ड वाइड वेब वही एप्लीकेशन है। दरअसल डिजिटल डिवाइससेज या कंप्यूटरर्स ऑनलाइन या ऑफलाइन कनेक्टेड रहते हैं।

जब हम किसी सिस्टम से किसी भी तरह की इनफार्मेशन या डाटा मांगते हैं और अगर उस समय वह सिस्टम ऑफलाइन हुआ या इंटरनेट से कनेक्ट नहीं हुआ तो हमें हमारा डाटा मिलेगा ही नहीं। इसी समस्या को सुलझाने के लिए ऐसे सॉफ्टवेयर की जरूरत महसूस की गई जो कि किसी सिस्टम के ऑफलाइन होने के बावजूद भी उसमें मौजूद डाटा को हम तक पहुंचा सके। यह बिल्कुल ऐसा है जिसे किसी घर पर ताला लगा हुआ है, वह ताला हटाए बगैर हम घर में आ जा सके जोकि प्रैक्टिकली नामुमकिन है, लेकिन वर्ल्ड वाइड वेब ने  इंटरनेट की इस समस्या को सुलझा दिया।

दरअसल हर वह चीज जो इंटरनेट पर मौजूद होती है वह एचटीएमएल (HTML) यानी की हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज में बनी हुई होती है। और एक बार जब भी किसी टेक्स्ट को, इमेज को, ग्राफिक्स को साधारण भाषा में कहूं तो किसी भी तरह के डाटा को एक बार जब एचटीएमएल में बदल दिया जाता है तो भले ही होस्ट सिस्टम ऑफलाइन हो, इंटरनेट की मदद से हम उस डाटा को हमारे रिसीवर कंप्यूटर पर हासिल कर सकते हैं और यह सब सिर्फ इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि वर्ल्ड वाइड वेब एक ऐसे सॉफ्टवेयर की तरह काम करता है जो दुनिया भर में मौजूद सारे डिजिटल डिवाइस में मौजूद किसी भी तरह के डाटा को एचटीएमएल में बदलने के बाद आपस में इंटरलिंक कर देता है। यहां पर इंटरलिंकिंग का मतलब यह नहीं है कि हमारा कंप्यूटर परमानेंट किसी और डिवाइस या कंप्यूटर से जुड़ गया है, बल्कि इन सारी डिवाइसेज और कंप्यूटर में मौजूद यह सारा डाटा आपस में एक दूसरे से जुड़ जाता है।

अब इसका फायदा यह है कि अगर वह होस्ट कंप्यूटर जिससे हम डाटा लेना चाहते हैं, वह अगर ऑफलाइन भी हो, तब भी वैसा ही डाटा अगर किसी और सिस्टम पर मौजूद है, तो हमें हमारे रिसीवर कंप्यूटर पर बैठे-बैठे ही उस इंफॉर्मेशन का लिंक मिल जाता है और वह इंफॉर्मेशन या डाटा हमारे सिस्टम पर शो होने लगता है। इसमें सबसे खास बात यह है कि हमें बिल्कुल पता नहीं लगता कि जो डाटा हमने मंगाया है वह किसी और होस्ट कंप्यूटर से आया है।

Server

अब इस कंसेप्ट को समझने के लिए पहले हम सब सर्वस को समझ लेते हैं। दरअसल पर्सनल कंप्यूटर या लैपटॉप या वह डिजिटल डिवाइसेज जो हम रोजाना काम में लेते हैं उन सब का स्टोरेज काफी कम होता है ज्यादा से ज्यादा 1 टेराबाइट। लेकिन इंटरनेट पर मौजूद अथाह डेटा के सामने यह बहुत कम स्टोरेज है। अब ऐसे में जब सारा डाटा इन डिवाइसेज पर ही मौजूद हो तो हमारे सामने स्टोरेज की समस्या आ जाएगी। इससे निपटने के लिए इस तरह के कंप्यूटर बनाए गए जिनके अंदर स्टोरेज कैपेसिटी कई गुना ज्यादा होती है। कुछ-कुछ सरवर की स्टोरेज कैपेसिटी तो योटा बाइट (1 योटा बाइट = 1 X 1000000000000000 GB) तक की होती है।

इसका फायदा यह है, कि कई सारा डाटा ऐसे एक ही कंप्यूटर में आ जाएगा। अब जब क्योंकि कंप्यूटर में इतना सारा डाटा मौजूद है, तो उस में से किसी एक खास डाटा को ढूंढने के लिए कितना सारा वक्त और कितनी ज्यादा स्पीड चाहिए होगी, इसीलिए ऐसे कंप्यूटर का हार्डवेयर कॉन्फ़िगरेशन बहुत ज्यादा पावरफुल होता है, जैसे कि उनमें 2,4,8 या 16GB नहीं बल्कि कई गुना ज्यादा रैम लगाई जाती है। इनके प्रोसेसर आम साधारण प्रोसेसर नहीं बल्कि बहुत ही पावरफुल और हाईली स्पीड वाले प्रोसेसर होते हैं। तो इस तरह के जो कंप्यूटर होते हैं जो सिर्फ और सिर्फ इंटरनेट के डाटा को होल्ड करने के लिए बनाए जाते हैं, उन्हें स्टोर करने के लिए बनाए जाते हैं ऐसे कंप्यूटर्स को ही सर्वस कहा जाता है। और ऐसे सर्वर पर मौजूद डाटा को आपस में कनेक्ट करने के लिए वर्ल्ड वाइड वेब का इस्तेमाल किया जाता है।

वर्ल्ड वाइड वेब दुनिया भर में मौजूद वेबसाइट्स का एक कलेक्शन है। किसी भी तरह की वेबसाइट को जब हमें ओपन करना होता है तो हमें उस वेबसाइट का एड्रेस पता होना चाहिए। वेबसाइट के एड्रेस को यू आर एल (URL) कहते हैं। यूआरएल का मतलब होता है यूनिफार्म रिसोर्स लोकेटर (Uniform Resource Locator)। कभी-कभी इसे यूनिवर्सल रिसोर्रस लोकेटर भी कहा जाता है। दरअसल हिंदी में इसका मतलब होता है सार्वभौमिक संसाधन निर्देशक।

HTML

चलिए अब इन सब चीजों को और भी आसानी से समझते हैं। किसी भी तरह के डाटा को जो कि ऑफलाइन है, अगर उसे ऑनलाइन बदलना हो या इंटरनेट पर अपलोड करना हो तो सबसे पहले उसे एचटीएमएल (HTML) की मदद से ऑनलाइन डाटा में बदल देते हैं। एचटीएमएल की फुल फॉर्म होती है हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज (HYPERTEXT MARKUP LANGUAGE)। यह एक कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज है जो कि ऑनलाइन डाक्यूमेंट्स या वेबसाइट या वेबपेजेस बनाने के काम आती है।

HTML Logo

जब किसी भी तरह के डाटा को ऑनलाइन डॉक्यूमेंट में बदल दिया जाता है तो उस डॉक्यूमेंट को वेबपेज कहते हैं।

जब एक ही टॉपिक के ऊपर कई सारे डाक्यूमेंट्स या वेबपेज बनाए जाते हैं, तब इन सब वेब पेजेस को एक साथ कनेक्ट करके एक कॉमन फाइल बना दी जाती है। यह फाइल पूरी तरह से ऑनलाइन होती है, इसी फाइल को ही वेबसाइट कहा जाता है।

एक वेबसाइट में कई सारे वेबपेजेस होते हैं। इन सारे वेब पेजेस पर कई अलग-अलग तरह के टेक्स्ट, इमेजेस, ग्राफिक्स और वीडियोज अवेलेबल होते हैं।

अब जैसे असली दुनिया में किसी भी फाइल को एक नाम दिया जाता है, उस फाइल को किस लोकर में, किस अलमीरा में, किस बिल्डिंग में रखा जाता है। इन सब का रिकॉर्ड मेंटेन किया जाता है। अब जब भी हमें वह फाइल चाहिए होती है, तो हम इस पूरे रिकॉर्ड को सीक्वेंस में पढ़ते हैं, जैसे सबसे पहले बिल्डिंग का एड्रेस। फिर कौन सी अलमीरा में कौन सा लॉकर, इस तरह से उस फाइल का पूरा एड्रेस हमारे पास आ जाता है और हम उस फाइल को इस्तेमाल कर सकते है।

बस अब बिल्कुल उसी तरह से ऑनलाइन दुनिया में कोई भी वेबसाइट किस सर्वर पर है, उस सर्वर पर उस वेबसाइट को एक एड्रेस दिया जाता है, वेबसाइट के इसी एड्रेस को उस वेबसाइट का यू आर एल कहते हैं यानी की यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर। अब इस यूआरएल की मदद से हम पूरी दुनिया में कहीं से भी इस वेबसाइट को एक्सेस कर सकते हैं, इसीलिए इसे यूनिफार्म या युनिवर्सल रिसोर्स लोकेटर कहते हैं।

तो अब इसे सिंपल भाषा में समझते हैं, किसी भी तरह के ऑफलाइन डाटा को सबसे पहले एचटीएमएल की मदद से ऑनलाइन डाटा में बदल देते हैं, यह डाटा वेबपेज पर स्टोर रहता है। ऐसे कई सारे वेबपेजेस को मिला करके एक वेबसाइट बनती है। इन सारी वेबसाइट्स के कलेक्शन को ही वर्ल्ड वाइड वेब WWW, (WORLD WIDE WEB) कहते हैं।

हर एक वेबसाइट का अलग एड्रेस होता है जो उसका यूआरएल कहलाता है। हर वेबसाइट के यू आर एल एड्रेस के पहले डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू (WWW) लिखा जाता है। उदाहरण के तौर पर नीचे एक वेबसाइट का एड्रेस देखिए:

www.knowledgeinhindi.in

यहां इस वेबसाइट का नाम है “Knowledge in Hindi” और उसके आगे डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू (WWW) लिखा हुआ है, यानी कि यह वेबसाइट वर्ल्ड वाइड वेब से जुड़ी हुई है।

अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे कि इंटरनेट सिर्फ और सिर्फ एक कम्युनिकेशन मीडियम है, जबकि world-wide-web एक ऐसी एप्लीकेशन है जो इस कम्युनिकेशन मीडियम का इस्तेमाल करके सारी दुनिया को ऑनलाइन कनेक्टिविटी प्रदान करती है।

वर्ल्ड वाइड वेब का इतिहास

Tim Berners-Lee

वर्ल्ड वाइड वेब का आविष्कार भी उन्होंने ही किया जो एचटीएमएल के जनक या पिता कहलाते हैं यानी कि Tim Berners-Lee. टिम बर्नर्स ली ने एचटीएमएल का आविष्कार इसलिए किया था ताकि इंटरनेट को इस्तेमाल करना ज्यादा आसान हो। इसी एचटीएमएल की मदद से इन्होंने world-wide-web की परिकल्पना करी, और अपनी इसी परिकल्पना पर उन्होंने काम करना शुरू किया। उनकी अवधारणा यह थी कि एक ऐसा सिस्टम होना चाहिए जो दुनियाभर के ऑनलाइन डाटा को आपस में इंटरलिंक या कनेक्ट कर सके और सबसे बड़ी बात इस इंटरलिंक्ड डाटा को एक्सेस करना इतना आसान हो कि कोई भी आसानी से इंटरनेट से जुड़ सके और इस तरह के डाटा को एक्सेस कर सके। इसी सोच के साथ उन्होंने वर्ल्ड वाइड वेब के प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया। 1989 में इन्होंने इस प्रोजेक्ट पर काफी बड़े स्तर पर काम शुरू किया और उन्हें सफलता भी मिली। 1991 तक आते-आते वर्ल्ड वाइड वेब बहुत तेजी से पूरे विश्व में विख्यात हुआ और लोग इसे इस्तेमाल भी करने लगे।

टीम बर्नर्स ली W3C के डायरेक्टर थे। कुछ लोग W3C की फुल फॉर्म world-wide-web corporation समझते हैं, जबकि इसकी असली फुल फॉर्म निम्नलिखित है:

World Wide Web Consortium (W3C)

यह संस्था पूरी तरह से इंटरनेट ओर इंटरनेट से जुड़े हुए उत्पादों को बेहतर और आसान बनाने के लिए समर्पित थी। एचटीएमएल का आविष्कार भी इसी संस्था के सहयोग से हुआ, एचटीएमएल के आविष्कार के बाद वर्ल्ड वाइड वेब का आविष्कार भी इसी संस्था के सहयोग से हुआ।

World Wide Web का सबसे पहला परिक्षण दिसम्बर 1990 में Switzerland में स्थित CERN के प्रयोगशालाओं में हुआ था।

टीम बर्नर्स ली ने वर्ल्ड वाइड वेब टेक्निक को डिवेलप करने के लिए 3 स्टेप्स में काम किया जोकि निम्नलिखित हैं:

सबसे पहले एच टी एम एल (HTML) का आविष्कार किया ताकि ऑनलाइन वेब पेज या वेबसाइट बनाना ज्यादा आसान हो सके।

इसके बाद उन्होंने वेबसाइट के एड्रेस पर काम करना शुरू किया, क्योंकि उनके अनुसार किसी भी वेबसाइट का एक यूनिक एड्रेस होना चाहिए, ताकि उसे इतने सारे वेबसाइट के समूह में से ढूंढना आसान हो। इसके लिए उन्होंने यूआरएल (यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर) पर काम करना शुरू किया।

HTTP

और सबसे आखिर और सबसे महत्वपूर्ण कदम यह था कि किस तरह से एचटीएमएल में बने हुए सारे ऑनलाइन डाक्यूमेंट्स होस्ट कंप्यूटर से रिसीवर कंप्यूटर और रिसीवर कंप्यूटर से होस्ट कंप्यूटर के बीच में ट्रेवल करेंगे। इसके लिए उन्होंने एक प्रोटोकॉल डिजाइन किया जिसका नाम था हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल (HYPERTEXT TRANSFER PROTOCOL) जिसे शॉर्ट में एचटीटीपी (HTTP) भी कहते हैं। किसी भी वेबसाइट के एड्रेस के सबसे पहले यहां तक कि www से भी पहले एचटीटीपी लिखा होता है, जिसका मतलब है कि यह जो वेबसाइट अभी ओपन होने वाली है यह सारी एचटीएमएल में बनी है, दूसरा यह हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकोल के रूल को फॉलो करती है और तीसरा यह वर्ल्ड वाइड वेब से जुड़ी हुई है।

इस तरह से टीम बर्नर्स ली ने तीन तरफा कदम बढ़ाते हुए आखिरकार world-wide-web को सक्सेसफुली बना ही लिया और आम जनता के लिए रिलीज कर दिया।

रिलीज होने के बाद कुछ ही समय में यह लोगों के बीच में इतना तेजी से प्रसिद्ध होता गया कि 1991 तक आते-आते दुनिया भर के कई हिस्सों में लोग भाग इसे इस्तेमाल करने लगे।

इंटरनेट के शुरुआती दिनों में इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए कोई चार्ज या कीमत नहीं देनी पड़ती थी, पर बाद में कुछ वक्त के लिए इंटरनेट इस्तेमाल करने पर उसकी कीमत चुकानी होती थी। जैसे कि हमारे घर पर टेलीफोन कनेक्शन होने पर टेलीफोन का बिल आता है, बिल्कुल उसी तरह। अब क्योंकि world-wide-web इंटरनेट के ऊपर निर्भर करती है तो शुरुआत में वर्ल्ड वाइड वेब को भी इस्तेमाल करने के लिए कुछ कीमत देनी होती थी, पर जल्द ही टीम बर्नर्स ली ने इसे निशुल्क करवा दिया यानी कि अब आपको सिर्फ और सिर्फ इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए कीमत देनी हैं, world-wide-web इस्तेमाल करने के लिए नहीं।

आज की भाषा में बात करें तो आपको आपकी डिवाइस में डाटा पैक एक्टिव करवाने के लिए डाटा पैक खरीदना होता है, पर एक बार इंटरनेट चालू हो जाने के बाद किसी भी तरह की एप्लीकेशन को चलाने के लिए वेब ब्राउज़र नहीं खरीदना पड़ता, और ना ही जब तक वेब ब्राउज़र चल रहा है तब तक उसके पैसे देने पड़ते है, यानी कि वेब ब्राउज़र तो फ्री में ही चलता है। बस यही है वर्ल्ड वाइड वेब का फ्री में चलने का तरीका।

यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि world-wide-web को इस्तेमाल करने के लिए आपके डिजिटल डिवाइस में एक एप्लीकेशन होनी चाहिए जिसे वेब ब्राउज़र कहते हैं।

वेब ब्राउज़र या एचटीएमएल के बारे में और ज्यादा जानने के लिए आप हमारे ब्लॉग्स पढ़ सकते हैं, जो इन्हीं विषयों के ऊपर लिखे जा चुके हैं। यहां पर हम आपको शॉर्ट में बता देते हैं की वेब ब्राउज़र होता क्या है। वेब ब्राउज़र एक एप्लीकेशन है जहां पर जाकर के किसी भी वेबसाइट का एड्रेस डालने पर वह हमें उस वेबसाइट को ओपन करके दिखा देता है।

Tim Berners-Lee के बनाए हुए सबसे पहले सर्वर का नाम “Httpd” था। जो की नेक्स्ट स्टेप (NEXT STEP) एनवायरनमेंट के अनुसार काम करता था। नेक्स्ट स्टेप 1980 के उत्तरार्ध में शुरू हुई एक आईटी कंपनी है, जो कि उस समय कंप्यूटर सिस्टम्स और ऑपरेटिंग सिस्टम्स मुहैया करवाती थी।

यहां हम एक बात और बताना चाहेंगे कि 1991 तक विश्व भर में डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू काफी विख्यात हो रहा था, व इस्तेमाल भी हो रहा था। पर उस समय तक सिर्फ कुछ सिलेक्टेड वेबसाइट्स ही वर्ल्ड वाइड वेब के साथ जोड़ी गई थी। धीरे-धीरे वक्त बढ़ने के साथ बाकी वेबसाइट और बाकी वेबपेजेस भी वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) के साथ जोड़ दिए गए।

वर्ल्ड वाइड वेब काम कैसे करता है?

वर्ल्ड वाइड वेब काम कैसे करता है

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अब तक आपको समझ में आ चुका होगा कि वर्ल्ड वाइड वेब का आविष्कार कैसे हुआ, उसके पीछे बेसिक कौन सी 3 स्टेप्स काम करती है। लेकिन अब हम यह जानेंगे कि आखिर वर्ल्ड वाइड वेब में जब इतनी सारी वेबसाइट होती है तो हमारे सामने इतनी आसानी से world-wide-web काम कैसे करता है।

इसे हम एक उदाहरण से समझेंगे।

अगर हमें वर्ल्ड वाइड वेब इस्तेमाल करते हुए कोई वेबसाइट ओपन करनी है, तो सबसे पहले हमें हमारी डिवाइस के अंदर वेब ब्राउज़र ओपन करना होगा।

ब्राउज़र ओपन करने के बाद उसमें सबसे ऊपर की तरफ यू आर एल बार या एड्रेस बार दिखाई देगी इसी बार के अंदर हमें हमारी रिक्वायर्ड वेबसाइट का पूरा एड्रेस लिखना होगा जैसे कि:

https://www.knowledgeinhindi.in

इस तरह से यूआरएल डालकर एंटर करने पर सबसे पहले वेब ब्राउजर इस एड्रेस के लिए डोमेन नेम सर्वर (Domain name server, DNS) से कांटेक्ट करेगा और इस डोमेन के अनुसार इस वेबसाइट को ढूंढने का अनुरोध DNS से करेगा।

DNS

डोमेन नेम सर्वर या डीएनएस एक ऐसी एप्लीकेशन है जो की वेबसाइट के अंदर लिखे हुए टेक्स्ट को उसके ip-address से पहचानने का काम करती है, ताकि यह पता लग सके कि जो वेबसाइट यूजर ने मांगी है वह दरअसल किस सर्वर पर या कंप्यूटर पर सेव करके रखी गई है।

एक बार हमारी चाही हुई वेबसाइट का आईपी एड्रेस जब वेब ब्राउज़र को मिल जाता है, तो उसके बाद हमारे वेब ब्राउजर से एक रिक्वेस्ट होस्ट कंप्यूटर तक भेजी जाती है जिसमें उस होस्ट कंप्यूटर से कनेक्ट होने की और हमारा चाहा हुआ डाटा ऑनलाइन भेजने की परमिशन मांगी जाती है।

जब होस्ट कंप्यूटर से परमिशन मिल जाती है, तो कंफर्मेशन लिंक रिसीवर कंप्यूटर पर भेज दिया जाता है। इस पूरे प्रोसेस को “हैंडसेक मैथड” कहते हैं।

हैंड शेक मेथड कंप्लीट होने के बाद रिसीवर कंप्यूटर और होस्ट कंप्यूटर के बीच में टेंपररी लिंक स्थापित हो जाता है। अब होस्ट कंप्यूटर अपने डेटाबेस में हमारे चाहे हुए डाटा को सर्च करता है, अगर वह डाटा होस्ट कंप्यूटर को अपनी डेटाबेस में मिल जाता है तो वह उसकी एक डुप्लीकेट टेंपररी कॉपी बनाता है, और वह कॉपी ऑनलाइन रिसीवर कंप्यूटर को भेज दी जाती है। यानी कि हम जो वेबसाइट या वेबपेज हमारे स्क्रीन पर देख रहे हैं वह ओरिजिनल नहीं बल्कि ओरिजिनल की एक टेंपररी कॉपी है। यह सब इसलिए ताकि ओरिजिनल या असली डाटा के साथ कोई छेड़खानी ना हो व असली डेटा हमेशा सुरक्षित बना रहे।

अगर होस्ट कंप्यूटर के पास डाटा या फाइल नहीं है, तो वह रिक्वेस्ट को डिक्लाइन कर देगा और टेंपरेरी लिंक खत्म हो जाएगा। ऐसा होने के बाद हमें फिर से दूसरे सर्वर से कांटेक्ट करना होता है, और फिर से ऊपर लिखा हुआ पूरा प्रोसेस रिपीट होता है।

एक बार जो डाटा हमें चाहिए वह जब हमारे रिसीवर कंप्यूटर पर हमें मिल जाता है, उसके बाद में होस्ट कंप्यूटर और रिसीवर कंप्यूटर के बीच बना हुआ टेंपरेरी लिंक टूट जाता है।

इस सारे कम्युनिकेशन को और डाटा ट्रांसफर को एचटीटीपी हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकोल मॉनिटर करता है और अपने हिसाब से कंट्रोल करता है और इस सारे प्रोसेस के लिए गाइडेंस भी देता है।

यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर हमने जो डाटा होस्ट कंप्यूटर से रिसीव किया है, अगर हम उसे हमारे रिसीवर कंप्यूटर पर डाउनलोड करते हैं, तो उसकी वह जो टेंपरेरी कॉपी थी वह हमारे कंप्यूटर में एक ओरिजिनल फिजिकल कॉपी की तरह सेव हो जाती है। अगर हम उस डाटा को डाउनलोड नहीं करते है तो हम उसे सिर्फ तब तक ही एक्सेस कर सकते हैं, जब तक कि हम होस्ट कंप्यूटर से जुड़े हुए हैं, या जब तक हमारे कंप्यूटर में इंटरनेट चालू है। एक बार इंटरनेट बंद कर देने पर होस्ट कंप्यूटर से हमारा लिंक टूट जाता है और वह डाटा जो थोड़ी देर पहले हमें स्क्रीन पर दिख रहा था, अब हम उसे फिर से नहीं देख सकते हैं।

साधारण शब्दों में ऑनलाइन रहते हुए हम किसी भी वेबसाइट को आसानी से एक्सेस कर सकते हैं। अगर हम चाहते हैं कि हम उसे ऑफलाइन भी इस्तेमाल कर सके तो उसमें से जो भी डाटा हमें चाहिए उसको डाउनलोड कर लेना चाहिए।

एक बात गौर करने वाली है कि हर वेबसाइट के ऊपर मौजूद डाटा को डाउनलोड नहीं किया जा सकता है। दरअसल डेटा की सिक्योरिटी के लिए उसके साथ डाउनलोड की परमिशन दी जाती है। अगर डाटा के मालिक ने डाटा को डाउनलोड करने के लिए परमिशन दे रखी है, तब तो हमारा डाटा डाउनलोड हो जाएगा। अगर यह परमिशन नहीं है तो वह डाटा हम डाउनलोड नहीं कर सकते हैं वह डाटा सिर्फ ऑनलाइन ही एक्सेस कर सकते हैं।

इस ब्लॉग के माध्यम से हमने आपको वर्ल्ड वाइड वेब के बारे में इंफॉर्मेशन देने की कोशिश करी है, और साथ ही साथ इंटरनेट और वर्ल्ड वाइड वेब के बीच के अंतर को समझाने का प्रयास किया है। अगर आप वर्ल्ड वाइड वेब के बारे में और ज्यादा जानना चाहते हैं या ऊपर लिखे हुए जानकारी में से आप कुछ पूछना चाहते हैं, तो आप हमें नीचे कमेंट में लिखकर बता सकते हैं। आपका फीडबैक हमारे लिए बहुत मायने रखता है, तो आपको यह ब्लॉक आर्टिकल कैसा लगा, हमें लिखकर जरूर बताइएगा।

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