ईमेल क्या हैं? – Email in Hindi

कहते हैं कि सुनने से ज्यादा पढ़ा हुआ याद रहता है, शायद इसीलिए एक दूसरे तक संदेश पहुंचाने के लिए लिखे हुए खतों का इस्तेमाल शुरू हुआ था। एक वक्त था जब खत या पोस्टकार्ड एक जगह से दूसरी जगह तक बड़े संदेश पहुंचाने के काम आता था। इसका सबसे बड़ा फायदा यह था की सारा संदेश या मेसेज खत में लिखित भाषा में सुरक्षित रहता था, और जरूरत पड़ने पर उसे फिर से कभी भी पढ़ा और इस्तेमाल किया जा सकता था। पर सबसे बड़ी समस्या थी खत का एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचने में लगने वाला समय। कम से कम 3 से 4 दिन तो लगते ही थे, कभी-कभी तो खत पहुंचते ही नहीं थे। और कई बार तो जिस वक्त तक खत पहुंचना था वह वक्त निकल जाने के बाद में खत पहुंचते थे जिससे कई जरूरी काम सही वक्त पर नहीं हो पाते थे।

पर यह सब बीते वक्त की बात थी। इंसान अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए रोज नए-नए आविष्कार करता रहता है। इसी तरह का एक अविष्कार था जिसने संदेश एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाने का तरीका ही बदल कर रख दिया और वह आविष्कार था ईमेल।

इन सब समस्याओं का हल ईमेल ने दिया था। ईमेल एक तरह का ऑनलाइन खत होता है, जिसमें सारा मैसेज या इंफॉर्मेशन एक से दूसरी जगह तक भेजी जाती है। सबसे बड़ा फायदा, ईमेल कुछ ही मिनटों में डेस्टिनेशन तक पहुंच जाती है। फिजिकल खत को भेजने में थोड़ा सा खर्चा लगता है जबकि इ मेल में खर्चा ना के बराबर है, सिर्फ और सिर्फ आपके पास में इंटरनेट होना चाहिए, एक डिजिटल डिवाइस होनी चाहिए और आप आसानी से ईमेल भेज सकते हैं।

ई-मेल की इन्हीं खूबियों को आपको बताने के लिए आज का हमारा विषय है ईमेल।

ईमेल क्या हैं? – Email in Hindi

ईमेल क्या हैं? - Email in Hindi

ईमेल का फुल फॉर्म है इलेक्ट्रॉनिक मेल। इसे इलेक्ट्रॉनिक मेल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल डिवाइसेज की मदद से संदेश टाइप करके या किसी भी तरह की इमेजेस, चार्ट, ग्राफ या किसी भी अन्य तरह की फाइलें भी ई-मेल में अटैच करके भेजी जा सकती है।

ई-मेल की परिभाषा

ईमेल या इलेक्ट्रॉनिक मेल ऑनलाइन एक जगह से दूसरी जगह तक मैसेज भेजने की तकनीक है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज की मदद से किसी भी तरह का डाटा एक से दूसरी जगह तक ऑनलाइन भेजा जा सकता है। ई-मेल को आम भाषा में मेल भी कहा जाता है।

ई-मेल का इतिहास

आप लोगों में से ज्यादातर जने यह सोचते होंगे कि हमारे ब्लॉग्स में हम हर टापिक का इतिहास क्यों बताते हैं?

आज के समय में हम कई सारी चीजों का इस्तेमाल करते हैं, पर एक वक्त था जब दुनिया बहुत ही स्लो थी। उस समय एक छोटा सा आविष्कार भी अपने आप में एक क्रांतिकारी कदम था।

जो चीजें आज हमें बहुत ही आसान लगती है, उन्हें आज के मौजूदा रूप में आने में बहुत लंबा सफर तय करना पड़ा है, हमारी पूरी कोशिश होती है की आप हर टॉपिक के इतिहास को जीवंत तरीके से महसूस कर सकें, क्योंकि किसी विषय के इतिहास को समझने से ही उसका महत्व समझ में आता है।

चलिए अब हम फिर से हमारे पॉइंट पर लौट आते हैं। वैसे तो ईमेल के आविष्कार की शुरुआत 1969 में ही हो चुकी थी, पहला ईमेल सिस्टम 1965 में Massachusetts Institute of Technology में बनाया गया था, जिसका नाम MAILBOX था। पर अधिकारिक तौर पर पहला ईमेल 1971 में भेजा गया था। 1965 मे ही एक और सिस्टम था जो ईमेल भेजने के काम आता था उसका नाम SNDMSG था।

जैसा कि हम हमारे पहले के ब्लॉक “इंटरनेट क्या है?” में पढ़ चुके हैं की एप्रानेट (APRANET) विश्व का पहला इंटरनेट नेटवर्क था। एप्रानेट के आविष्कार के बाद से दुनिया में कम्युनिकेशन के क्षैत्र में कई सारे बदलाव तेजी से आए।

Ray Tomlinson

ई-मेल का आविष्कार Ray Tomilson ने किया था। 1960 में उन्होंने ई-मेल के ऊपर काम करना शुरू किया था, पर सफलता उन्हें 1970 तक मिली। उस समय ईमेल भेजने के लिए सेंडर और रिसीवर दोनों का ही एक साथ एक ही समय पर ऑनलाइन (उस समय ऑनलाइन जैसी कोई कंडीशन नहीं थी पर यहां ऑनलाइन का मतलब ऐप्रानेट से जुड़ा होना है।) होना जरूरी था, क्योंकि अगर दोनों एक साथ ऑनलाइन नहीं होते थे तो रिसीवर सेंडर से किसी भी तरह का डाटा ना तो मांग सकता था और ना ही भेज सकता था क्योंकि अगर रिसीवर ऑफलाइन होगा तो जो मैसेज या डाटा सेंडर ने भेजे हैं वह उसे कभी रिसीव भी नहीं होगा। आज के समय में स्टोर एंड फॉरवार्ड मॉडल काम में आता है, इसमें सेंडर जब चाहे किसी को भी ईमेल भेज सकता है, सामने वाला ऑफलाइन भी हो तब भी ईमेल उसके वर्चुअल इन बॉक्स में चली जाती है, और जब भी रिसीवर ऑनलाइन आता है, वह ईमेल उसके वर्चुअल इनबॉक्स में से निकल कर उसके ईमेल के असली फिजिकल इनबॉक्स में आ जाती है। इसी वजह से कई बार हमें महीनों पुरानी ईमेल भी हमारा मेल अकाउंट लॉगिन करते ही मिल जाती है।

शुरुआत में ईमेल के अंदर सिर्फ टेक्स्ट ही भेजा जा सकता था, पर जैसे-जैसे ईमेल में बदलाव आते गए वैसे वैसे ई-मेल के साथ कई तरह के अटैचमेंट भी भेजे जाने लगे।

पर ईमेल भेजना शुरुआत से ही इतना आसान नहीं था जितना कि आज है। पहले कोई भी दो कंप्यूटर जिन्हें आपस में कनेक्ट किया जाता था उनके बीच में ही ईमेल भेजी या रिसीव की जा सकती थी। पर रे टामिलसन के प्रयासों की वजह से एक ही सेंडर कंप्यूटर से कई सारे अलग-अलग रिसीवर्स को ईमेल भेजना संभव हो पाया।

ई-मेल के आविष्कार से पहले फैक्स मशीन का आविष्कार हो चुका था। उस समय तक फैक्स मशीन पर मैसेज भेज कर आपस में कम्युनिकेशन किया जाता था। यह टेलीफोन लाइन के मुकाबले काफी महंगा और वक्त खर्च करने वाला था, पर इसमें सारा डाटा सिक्योर रहता था, यानी कि कोई भी आपस में बात करने वालों की बातचीत को सुन या पढ़ नहीं पाता था। पर इस में काम आने वाले रिसोर्सेज काफी महंगे थे, इसलिए एक ऐसे माध्यम की जरूरत थी, जो बहुत कम खर्चे में सिक्योर कम्युनिकेशन उपलब्ध करवा सकें।

एप्रानेट को इस्तेमाल करने वाले वैज्ञानिक एक दूसरे को एप्रानेट की मदद से मैसेज तो भेज सकते थे, पर मैसेज रिसीव होगा या नहीं यह कंफर्म नहीं होता था। और सबसे खास बात जैसा कि हम पहले पढ़ चुके हैं कि उस समय रिसीवर का भी उसी समय एप्रानेट से जुड़ा होना या साधारण भाषा में कहें ऑनलाइन होना जरूरी था, अन्यथा अगर सामने वाला ऑफलाइन है तो उसका मैसेज सेल्फ डिलीट हो जाता था इससे कभी भी किसी को यह पता नहीं लगता था कि जब ऑफलाइन था तो उसे किस-किस ने कांटेक्ट किया था।

जब एप्रानेट को रिसर्चस के लिए चालू किया गया तब ARPANET contractor कि तौर पर (यह काम Ray Tomilson, Bolt Beranek and Newman के लिए करते थे।) Tomlinson ने @ सिंबल का यूज किया जिससे एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर पर मौजूद कंप्यूटर को ईमेल भेजना ज्यादा आसान हो गया।

शुरुआत में ईमेल भेजना बिल्कुल ऐसा था जैसे आज के समय में हम मैसेंजर यूज करते हैं, पर टामिलसन के प्रयासों की वजह से हम इमेल का आज का मौजूदा वर्जन देख पा रहे हैं।

इमेल काम कैसे करता है?

“@” , यह सिंबल इंटरनेट को रिप्रजेंट करता है, यही वह सिंबल है, जो ईमेल को मल्टी कम्युनिकेशन फैसिलिटी प्रोवाइड करता है। इसे एट दी रेट कहा जाता है।

उदाहरण के तौर पर [email protected] लेते हैं। इसमें @ के पहले xyz लिखा है, और @ के बाद hotmail.com लिखा है। इसमें xyz लोकल ऐड्रेस कहलाता है, यानी की जिस कंप्यूटर पर या फिर जिस यूजर की ईमेल आईडी पर हमें ईमेल भेजना है उसका खुद का एड्रेस। यह एड्रेस युजर अपनी इच्छा से बना सकता है।

@ के बाद लिखा हुआ हिस्सा डोमेन कहलाता है। डोमेन वो सर्विस प्रोवाइडर है जो ई-मेल के नेटवर्क को कंट्रोल करते हैं। हम अपनी इच्छा से कोई भी डोमेन प्रोवाइडर चुन सकते हैं। जैसे कि हॉटमेल, जीमेल, रेडिफमेल आदि।

जब भी हम कोई ईमेल किसी को भेजना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे पहले हमारे पास खुद की भी एक ईमेल आईडी होनी चाहिए। क्योंकि ईमेल इंटरनेट ट्रांसफर प्रोटोकोल सिस्टम पर काम करता है।

इसे ऐसे समझ सकते हैं, इंटरनेट की ऑनलाइन दुनिया में डोमेन प्रोवाइडर खुद का कुछ स्पेस रखते हैं, जब भी हम किसी डोमेन पर जाकर खुद की एक ईमेल आईडी बनाते हैं तो हमें उस डोमेन प्रोवाइडर के वेब स्पेस में से थोड़ा सा स्पेस खुद के इस्तेमाल के लिए मिल जाता है।

यह बिल्कुल ऐसा है जैसे असली दुनिया में कोई कांट्रेक्टर बड़ी सी जमीन खरीद कर उस पर कांपलेक्स बना देता है। हम हमारी इच्छा से उस पूरे कांपलेक्स में कोई भी एक या दो या जितने चाहे फ्लेटस खरीद सकते हैं। असली दुनिया में हमें इसके लिए कॉन्ट्रैक्टर को कुछ कीमत देनी होती है जबकि ऑनलाइन दुनिया में खुद की ईमेल आईडी बनाने का कोई चार्ज नहीं होता हैं। कुछ GB जितना स्पेस हमें फ्री में मिल जाता है। पर इस फ्री स्पेस से ज्यादा स्पेस इस्तेमाल करने पर हमें उस एक्स्ट्रा स्पेस की कीमत देनी होती है।

(नोट: जीमेल में 15 जीबी स्पेस फ्री मिलता है इससे ज्यादा इस्तेमाल करने पर हमें जीमेल को हर जीबी स्पेस के हिसाब से कीमत देनी होगी। ईमेल आईडी बनाने के बाद में जितनी भी ईमेल्स हमें रिसीव होती है, वह सब थोड़ा थोड़ा करके स्पेस घेरती रहती है और साथ के साथ अगर किसी ईमेल में किसी भी तरह के अटैचमेंट है, तो भले ही हम उन्हें डाउनलोड कर ले फिर भी वह हमारे ईमेल अकाउंट में थोड़ी बहुत जगह घेरती है। इस तरह धीरे-धीरे करके हमारा यह 15 जीबी का स्पेस फुल होने लगता है। इसीलिए ईमेल रिसीव करने के बाद अगर उनका काम खत्म हो जाए तो वह ईमेल समय रहते डिलीट करते रहना चाहिए।)

जब हम किसी को ईमेल भेजते हैं, तो हमारे डोमेन नेम सर्विस जिसे शॉर्ट में DNS कहते हैं, से ईमेल निकलकर सामने वाले के डोमेन नेम सर्विस मे प्रवेश करता है, वहां से रिसिपिएंट्स (जिसे ईमेल भेजा गया है) के लोकल एड्रेस को ढूंढते हुए उसके ईमेल आईडी तक चला जाता है अगर उस समय रिसिपिएंट्स ऑनलाइन है तो उसे ईमेल मिल जाएगा नहीं तो यह उसके ईमेल आईडी के वर्चुअल मेल बॉक्स में सेव हो जाएगा।

इमेल काम कैसे करता है?

इस पूरे प्रोसेस में दिए गए निम्नलिखित प्रोटोकॉल्स काफी महत्वपूर्ण रोल प्ले करते हैं:

  • Mail user agent (MUA)
  • Submission Protocol
  • Simple Mail Transfer Protocol (SMTP)
  • Mail Submission Agent(MSA)
  • MXrecords
  • Message Transfer Agent (MTA)
  • Message Delivery Agent (MDA)
  • Post Office Protocol (POP3)
  • Internet Message Access Protocol (IMAP)

एक ईमेल दो हिस्सों में बटा होता है, पहला हेडर पार्ट दूसरा मैसेज बॉडी।

हेडर पार्ट में ईमेल भेजने वाले का ईमेल एड्रेस, ईमेल रिसीव करने वाले का ईमेल एड्रेस और ईमेल का सब्जेक्ट, डेट जैसी जानकारी लिखी होती है।

हेडर पार्ट में मौजूद फील्डस को हेडर फील्ड्स कहा जाता है, ये एक से ज़्यादा लाईन में बंटे हुए होते हैं। हर लाइन की केपिसिटी 78 केरेक्टर की होती हैं।

हर हेडर में निम्नलिखित फील्ड्स होते हैं।

ईमेल फील्ड्स

From: इस फील्ड में ईमेल भेजने वाले का ईमेल एड्रेस होता है। यह खुद ब खुद ही आ जाता है।

Date: जिस डेट को ईमेल भेजा जा रहा हैं, वो डेट और टाईम इसमें खुद ही आ जाती है।

To: जिसे ईमेल भेजना है, उसका ईमेल एड्रेस इस फील्ड में हमें डालना पड़ता है। एक बात यहां बहुत ज्यादा ध्यान देने वाली है जिसे भी ईमेल भेजना है उसका ईमेल आईडी बिल्कुल करेक्ट डालना होगा एक केरेक्टर की भी गलती होने से ईमेल आईडी किसी और रिसीवर को चला जाएगा।

Cc: इसका फुल फॉर्म कार्बन कॉपी होता है। जब एक से ज्यादा जनो को ईमेल भेजने हो तो बाकी के ईमेल एड्रेस सीसी में लिखे जाते हैं।

Bcc: इस का फुल फॉर्म ब्लाइंड कार्बन कॉपी होता है। इसका काम भी Cc की तरह ही होता है।

इसके अलावा बाकी के ऑप्शन कंप्यूटर सॉफ्टवेयर या कंप्यूटर के समझने के लिए होते हैं जैसे कि कंटेंट टाइप या मैसेज आईडी आदि।

मैसेज बॉडी:

यह ई-मेल की लाइन का नीचे वाला हिस्सा होता है, इसमें यूजर या सेंडर अपनी इच्छा से कोई भी टेक्स्ट लिख सकता है। आमतौर पर जो भी मैसेज भेजना होता है वह इस बॉक्स में लिखा जाता है।

जैसा कि हमने पहले पढ़ा, शुरुआत में ई-मेल बॉडी में सिर्फ टेक्स्ट लिखा जा सकता था, पर अब टेक्स्ट के साथ-साथ कई तरह के ग्राफिक्स, इमेजेस यहां तक कि ऑडियो या वीडियो फाइल्स भी भेजी जा सकती है, पर यह सारे अटैचमेंट अटैच करने के लिए साइज की लिमिट भी दी हुई होती है।

टेक्स्ट बॉडी में सबसे नीचे की तरफ अगर हम चाहे तो हमारे नाम का परमानेंट सिग्नेचर भी बना सकते हैं। परमानेंट सिग्नेचर का मतलब जो ईमेल भेज रहा है, वह अपना नाम और अपनी डेजिगनेशन सेव करके अपना परमानेंट साइन बना सकता है, जिसे उसे हर बार ईमेल लिखते वक्त ऐड करना होगा।

ई-मेल कहां कहां इस्तेमाल होता है?

वैसे तो यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि आज के समय में ईमेल किस हद तक कम्युनिकेशन का सबसे बेहतर मीडियम बना हुआ है। चाहे ऑफिस हो या मार्केटिंग हो, पर्सनल मैसेजिंग हो या फिर सोशल कम्युनिकेशन। हर जगह ईमेल का इस्तेमाल होता है। ई-मेल में सबसे बड़ा फायदा यह है ईमेल एक बार लिखने के बाद जितने भी भेजना है उन सब के ईमेल आईडी ही हमें टाइप करने होते हैं और वह ईमेल सबको चला जाता है। इस तरह से एक सिंगल यूजर एक ही बार में कई सारे रिसीवर तक एक साथ ईमेल भेज सकता है। इसके अलावा हमें जो ईमेल्स हमारे इनबॉक्स में रिसीव होती है हम चाहें तो उन्हें वापस किसी और को भी फॉरवर्ड कर सकते हैं, और साथ के साथ ईमेल में रिप्लाई का ऑप्शन भी होता है। इस ऑप्शन पर क्लिक करने से जिसने हमें ईमेल भेजी है, यह रिप्लाई उसी को वापस जाएगा। रिप्लाई भेजने का तरीका बिल्कुल ईमेल भेजने के तरीके जैसा ही है।

इस्तेमाल के हिसाब से इमेल्स को मुख्यतः दो भागों में बांटा जाता है:

  • पहला प्रोफेशनल ईमेल
  • दूसरा पर्सनल ईमेल

आज के समय में ईमेल अकाउंट्स में कई तरह की सिक्योरिटी ऑप्शन दिए गए हैं, ताकि हमारी ईमेल आईडी को हमारे अलावा कोई और इस्तेमाल ना कर सके, इसीलिए जब ईमेल आईडी बनाई जाती है तब यह पूछा जाता है कि ईमेल आईडी प्रोफेशनल यूज़ के लिए है या पर्सनली उसके लिए उसी हिसाब से सिक्योरिटी फीचर्स दिए जाते हैं। ज्यादातर ऑफिस या जोब परपज के लिए प्रोफेशनल ईमेल आईडी दिए जाते हैं। ऐसी ईमेल आईडी को सीयूजी ईमेल आईडी कहते हैं आज के समय में जब भी हम कोई ऑफिस ज्वाइन करते हैं, तो हमें एक ऑफिशियल ईमेल आईडी दी जाती है इसमें दरअसल डोमेन नेम उस कंपनी के नाम पर रजिस्टर्ड होता है। यह कुछ-कुछ इंट्रानेट की तरह होता है। जब किसी बिल्डिंग को आपस में इंटरनेट के जरिए इंटरकनेक्टेड कर दिया जाता है तब ऐसे नेटवर्क को इंट्रानेट कहते हैं।

दूसरा होता है पर्सनल ईमेल आईडी यह आप अपने डिवाइस में जाकर के खुद बना सकते हैं।

प्रोफेशनल ईमेल आईडी आपको नौकरी छोड़ने पर वापस लौटानी होती है, यानी कि जिस ऑफिस से आपने जोब छोड़ी है, वहां से दी हुई ईमेल आईडी अब आप जॉब छोड़ने के बाद एक्सेस नहीं कर सकते हैं, क्योंकि यह गैरकानूनी हो जाता है। पर्सनल ईमेल आईडी हमेशा आपकी ही रहती है। आप जब तक चाहे इसे एक्टिव रख सकते हैं। व जब चाहे इसे डिलीट कर सकते हैं। जी हां अगर आपको जरूरत ना हो तो आप अपना ईमेल अकाउंट डिलीट भी कर सकते हैं, और जो भी डाटा आपने ऑनलाइन दे रखा था वह सब भी डिलीट हो जाएगा।

ईमेल प्रोवाइडर्स

ईमेल प्रोवाइडर्स

ईमेल प्रोवाइडर्स वह है जो हमें ईमेल अकाउंट बनाने की सुविधा प्रदान करते हैं। वैसे तो कई सारे ईमेल प्रोवाइडर्स मौजूद है, पर कुछ बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है व सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं: Gmail, Hotmail, Outlook, Rediffmail, Yahoo mail आदि। ईमेल अकाउंट बनाने का कोई चार्ज नहीं लगता है ऊपर दिए गए प्रोवाइडर उसमें से आप किसी पर भी जा करके अपना ईमेल अकाउंट बना सकते हैं। ईमेल अकाउंट बनाना बहुत ही आसान है, बस आपको कुछ पर्सनल डिटेल्स जेसे के अपना नाम, डेट ऑफ बर्थ, मोबाइल नंबर देने होते हैं। इसके बाद में यह इंफॉर्मेशन वेरीफाई करी जाती है। इंफॉर्मेशन वेरीफाई हो जाने के बाद में आपको एक यूजरनेम बनाना होता है, और अपने ईमेल आईडी को सुरक्षित रखने के लिए एक पासवर्ड जनरेट करना होता है। यह सारी इनफार्मेशन दे देने के बाद में आपका ईमेल अकाउंट बन जाता है और आपके पास सबसे पहले आपके ईमेल प्रोवाइडर की तरफ से ही कन्फर्मेशन और कांग्रेचुलेशन ईमेल रिसीव हो जाता है।

ई-मेल के फायदे

ई-मेल के कई सारे फायदे होते हैं जैसे कि कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हमारी बात हम ईमेल के जरिए पहुंचा सकते हैं। और साथ के साथ जो भी डाटा हमने भेजा है वह हमेशा सुरक्षित रहेगा।

अब वक्त बदलने के साथ-साथ ईमेल पर भेजे जाने वाले डाक्यूमेंट्स को मान्यता दी जाने लगी है। यानी कि अब अगर आपको कोई ऑफिशियल ईमेल आईडी आता है, तो उसमें दी हुई इंफॉर्मेशन पूरी तरह से ऑथेंटिक और ओरिजिनल होती है। उदाहरण के तौर पर अगर आपको म्युनिसिपल कोरपोरेशन से कोई ईमेल आता है उसमें जो भी नोटिस या इंफॉर्मेशन दी गई है वह ओरिजिनल मानी जाएगी उसके लिए अलग से आपके पास में म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन से सील साइन लगे हुए किसी डॉक्यूमेंट को पहुंचाने की जरूरत नहीं है। इसी वजह से अब आज के समय में ईमेल का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है जेसे कि बैंक या कॉरपोरेट सेक्टर।

दूसरा फायदा यह है कि अगर सैंडर भी ऑनलाइन है तो वह हाथों-हाथ हमें रिप्लाई भेज सकता है। वैसे भी आजकल कई सारे ईमेल प्रोवाइडर्स मैसेंजर की फैसिलिटी भी देते हैं, यानी कि अगर हम किसी को ईमेल भेजना चाहते हैं और अगर वह ऑनलाइन है तो हम ईमेल भेजने के बजाय डायरेक्ट उससे चैटिंग भी कर सकते हैं। इससे ईमेल भेजने और रिसीव करने में लगने वाला वक्त और मेहनत दोनों बच जाते हैं।

ई-मेल के नुकसान

वैसे तो ईमेल के कोई नुकसान नहीं है, पर कहते हैं कि आधा अधूरा ज्ञान हमेशा नुकसान पहुंचाता है। उसी तरह अगर किसी को इंटरनेट के बारे में पूरी तरह से जानकारी ना हो, या ईमेल चलाने की पूरी जानकारी ना हो तो हमारी सारी जानकारियां गलत हाथों में भी जा सकती है।

इसके अलावा जैसा कि हमने पहले बताया ईमेल इंटरनेट की मदद से चलता है तो अगर इंटरनेट कनेक्टिविटी ना हो तो ईमेल नाहीं भेजी जा सकती है ना ही रिसीव की जा सकती है।

सबसे बड़ा नुकसान यह है की हम चाहे या ना चाहे दिन भर में हमें कई ऐसे प्रमोशनल ईमेल्स आते हैं जिनसे हमारा कोई भी लेना देना नहीं है। ऐसे ईमेल हमारे ईमेल अकाउंट में बिना वजह का स्पेस घेर कर रखते हैं।

ईमेल से जुड़ी हुई कुछ रोचक जानकारियां

ईमेल अकाउंट बनाते वक्त लोग ज्यादातर ऐसे पासवर्ड्स बनाते हैं जो बहुत कॉमन होते हैं, जैसे के कीबोर्ड में अल्फाबेट के स्टार्टिंग कैरक्टर्स या फिर न्यूमैरिक नंबर्स में स्टार्टिंग सीरीज। वैसे आधे से ज्यादा लोग अपने डेट ऑफ बर्थ या मैरिज डेट को ही अपना पासवर्ड बना देते हैं। ऐसे पासवर्ड्स बहुत हानिकारक होते हैं क्योंकि इन्हें तोड़ना बहुत आसान होता है।

आज के समय में ईमेल की उपयोगिता इतनी बढ़ चुकी है कि हर रोज लगभग 205 बिलियन ईमेल भेजे जाते हैं यही नहीं 2019 खत्म होते-होते यह आंकड़ा 246 बिलियन हो चुका है। यह तो सिर्फ वह आंकड़ा है जो प्रोफेशनल लेवल पर अकाउंट किया जाता है अगर इनमें रिप्लाई किए जाने वाले ईमेल स्कोर जोड़ दिया जाए तो यह क्वांटिटी और भी ज्यादा बढ़ जाती है।

एक सबसे ज्यादा चौंकाने वाली फनी बात यह है कि सबसे ज्यादा ईमेल्स मंगलवार के दिन भेजे जाते हैं, क्योंकि संडे के बाद मंडे को पहले पेंडिंग काम निपटाया जाता है और उसके बाद मंगलवार से नए काम शुरू किए जाते हैं इसीलिए मंगलवार को सबसे ज्यादा ईमेल भेजें या रिसीव किए जाते हैं।

अगर सीयूजी ईमेल आईडी को हटा दिया जाए तो बाकी सारी ईमेल आईडी पर हर रोज रिसीव होने वाली इमेल्स में से लगभग 70 परसेंट ईमेल हमारे किसी काम की नहीं होती। यह सारी सिर्फ और सिर्फ प्रोफेशनल या मार्केटिंग से रिलेटेड ईमेल होती है।

और आखिर में एक ऐसा फैैक्ट जिसे बहुत कम लोग जानते हैं वह यह के ईमेल प्रोवाइडर्स हमें हमारे ईमेल अकाउंट में इतने सारे फीचर्स देते हैं। पर एक औसत यूजर इन फीचर्स के बारे में कभी जान ही नहीं पाता है। वह ईमेल अकाउंट को सिर्फ और सिर्फ ईमेल भेजने और रिसीव करने के काम में लेता है। इस बात का अंदाजा आप ऐसे भी लगा सकते हैं कि हर 10 में से 4 लोग अपना ईमेल अकाउंट इतने ज्यादा समय के बाद एक्सेस करते हैं कि वह पासवर्ड भूल चुके होते हैं और फिर उन्हें पासवर्ड रीसेट करना पड़ता है।

वैसे तो ईमेल के बारे में जानकारी अथाह है, हमने उसमें से कुछ विशेष जानकारी आपको यहां इस ब्लॉग के माध्यम से देने की कोशिश की है। आपको यह ब्लॉग कैसा लगा या ईमेल क्या हैं के बारे में और अधिक जानकारी के लिए नीचे कमेंट में लिखकर हमें बताएं।

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