इंटरनेट क्या है? – Internet in Hindi

इंटरनेट एक ऐसी चीज है जिससे आज के समय में शायद ही कोई अनभिज्ञ होगा। इंटरनेट का हिंदी मतलब होता है अंतरताना।

इंटरनेट की परिभाषा

इंटरनेट एक विश्वव्यापी कंप्यूटर नेटवर्क है जिसमें लाखों करोड़ों कंप्यूटर किसी पूर्व निर्धारित तथा सुनियोजित व्यवस्था के अनुसार आपस में जुड़े होते हैं।

इंटरनेट को नेटवर्क्स का नेटवर्क भी कहते हैं क्योंकि इसमें कई छोटे छोटे स्तर के कंप्यूटर नेटवर्क्स को आपस में जोड़ दिया जाता है और एक बहुत बड़े स्तर का कंप्यूटर नेटवर्क तैयार होता है।

इंटरनेट क्या है? - Internet in Hindi

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साधारण भाषा में अगर कहना चाहे तो इस दुनिया में मौजूद लाखों करोड़ों कंप्यूटर को जब आपस में जोड़ दिया जाता है तो यह जाल इंटरनेट कहलाता है। पर इन सभी कंप्यूटर्स​ को आपस में जोड़ना इतना भी आसान नहीं होता है। इसके लिए कई अलग-अलग तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इन तकनीकों को ही प्रोटोकॉल कहते हैं। जेसे की HTTP, TCP IP Protocol।

इंटरनेट का इतिहास

वैसे तो इंटरनेट की शुरुआत 1950 के आसपास हो चुकी थी उस समय दो कंप्यूटर को आपस में जोड़ पाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल था, क्योंकि एक तो कंप्यूटर खुद कमरे की साइज के होते थे, दुसरा स्टार्टिंग कंप्यूटर्स इंटरनेट कनेक्ट करने के लिए कोई आईडियोलॉजी नहीं थी और ना ही किसी के पास बेहतर तकनीक थी।

सबसे पहले 1960 में डाटा पैकेट स्विचिंग टेक्नोलॉजी इंट्रोड्यूस की गई। ARPANET, CYCLADES, NPL NETWORK उस समय की प्रमुख टेक्नोलॉजी के नाम थे जिनसे इंटरनेट चलता था। 1960 से 1977 के दशक में इंटरनेट अपने शुरुआती चरण में था।

ARPANET के जरिए सबसे पहला व्यवसायिक स्तर का इंटरनेट कनेक्शन 29 October 1969 को University of California los Angeles और Henry samueli school of engineering and applied science के बीच सफलतापूर्वक स्थापित किया गया और नेट चलाया गया।

1971 तक 13 और जगहों को इसी कनेक्शन के साथ जोड़ दिया गया। इस तरह कुल संख्या 15 हो गई।

1973 में सेटेलाइट को धरती पर मौजूद स्टेशन से कनेक्ट करने के लिए इंटरनेटनेट का इस्तेमाल किया गया था। इस घटना के बाद से ही इंटरनेट नाम प्रचलन में आ गया।

1981 तक ARPANET का इस्तेमाल कंप्यूटर साइंस नेटवर्क इंस्टीट्यूट (CSNET) भी करने लग गया। तब तक भी इंटरनेट इंटरनेट आम आदमी की पहुंच से दूर था, केवल कुछ सलेक्टेड व्यवसाय और शिक्षण संस्थाएं ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर पा रही थी।

1982 में टीसीपी आईपी प्रोटोकोल इंट्रोड्यूस किया गया जिसके बाद से इंटरनेट को वर्ल्ड में कहीं से एक्सेस करना थोड़ा आसान हो गया था।

1986 में National Science Foundation Network (NSFNet) ने यूनाइटेड स्टेट्स के रिसर्चर और स्कोलर्स को सुपर कंप्यूटर से कनेक्ट करने के लिए tcp-ip नेटवर्क प्रोटोकॉल में बदलाव किए, उसे पहले से ज्यादा बड़े स्तर का बनाया।

1990 में ARPANET को बंद कर दिया गया और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर आर्गेनाइजेशन अस्तित्व में आई।

यूरोप में 1988 में पहली बार  हाईस्पीड वाले सेटेलाइट की मदद से धरती पर मौजूद दो अलग-अलग यूनिवर्सिटीज Princeton University और Stockholm, Sweden को इंटरनेट की मदद से जोड़ा गया यह पहला वायरलेस इंटरनेट कनेक्शन था जो कि व्यवसायिक स्तर से हटकर गेर व्यवसायिक संस्थाओं के लिए जारी किया गया था।

इस समय तक के सभी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर में एक ही समस्या थी कि यह केवल अपने ही नेटवर्क में कनेक्ट हो सकते थे। इसे अगर आज की भाषा में बात करें तो वोडाफोन वाले सिर्फ वोडाफोन से कनेक्ट हो सकते हैं, एयरटेल वाले सिर्फ एयरटेल से ही कनेक्ट हो सकते हैं। यह अपने आप में काफी बड़ी समस्या थी क्योंकि इससे अभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की कनेक्टिविटी नहीं मिल पा रही थी।

1991 में कमर्शियल इंटरनेट एक्सचेंज की स्थापना हुई जिसके बाद से अलग-अलग नेटवर्क्स के इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर आपस में कनेक्ट हो सकते थे और इंटरनेट की मदद से कम्युनिकेशन कर सकते थे।

1994 में Stanford federal credit union के द्वारा पहली बार ऑनलाइन बैंकिंग फैसिलिटी चालू करने के बाद तो जैसे इंटरनेट में तूफान ही आ गया। 1995 तक आते-आते यूनाइटेड स्टेट्स में इंटरनेट यूज करने वाले यूजर्स की तादाद कई गुना बढ़ गई और यहां इंटरनेट आम जनता तक पहुंच बनाने लग गई।

2019 तक पूरे विश्व में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 4.39 बिलियन तक पहुंच चुकी है।

इंटरनेट काम कैसे करता है?

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जरा सोचिए अगर आपके पास में एक मोबाइल है और एक कंप्यूटर है और आपको मोबाइल का डाटा कंप्यूटर में सेव करना या इस्तेमाल करना है, तो इसके लिए मोबाइल को कंप्यूटर से जोड़ना होगा। अब इसके लिए कई अलग-अलग तरह के मीडियम मौजूद हैं जैसे कि मोबाइल की डाटा केबल से कंप्यूटर को जोड़ देना या फिर कंप्यूटर के अंदर वाईफाई ऑन करके उसे मोबाइल के वाईफाई नेटवर्क से जोड़ देना या फिर मोबाइल और कंप्यूटर दोनों को ही किसी तीसरे मौजूद नेटवर्क से जोड़ देना। इनमें से कोई भी तरीका इस्तेमाल करने पर कंप्यूटर मोबाइल आपस में जुड़ जाएंगे और हम कंप्यूटर की स्क्रीन पर मोबाइल की सारी एप्लीकेशन इस्तेमाल भी कर सकते हैं, साथ ही मोबाइल का डाटा कंप्यूटर में सेव भी कर सकते हैं और मोबाइल के डाटा में बदलाव भी कर सकते हैं और कंप्युटर का डेटा भी मोबाईल में ले सकते हैं या इस्तेमाल कर सकते हैं।

इंटरनेट भी कुछ इसी तरह से काम करता है। इसमें सबसे पहले दो कंप्यूटर को आपस में वायर या वायरलेस मीडिया की मदद से आपस में जोड़ दिया जाता है। इस तरह से दो कंप्यूटर का एक जोड़ा तैयार हो गया। अब इन दोनों कंप्यूटर में मौजूद डेटा एक दूसरे की स्क्रीन से एक्सेस किया जा सकता है, इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी कि किसी एक कंप्यूटर में मौजूद डेटा उससे जुड़े हुए दूसरे कंप्यूटर में आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है, डाउनलोड किया जा सकता है, उसमें बदलाव भी किया जा सकता है पर यह सब करने के लिए दोनों ही कंप्यूटर में ऐसा करने की परमिशन होनी चाहिए।

अब बिल्कुल पहले की ही तरह दो और कंप्यूटर को आपस में जोड़ दिया जाता है।

अब हमारे पास में दो दो कंप्यूटर के दो जोड़े तैयार हो चुके हैं। इन दोनों जोड़ों को आपस में जोड़ दिया जाता है तो एक बड़ा कंप्यूटर नेटवर्क तैयार हो जाता है। बस इंटरनेट बिल्कुल ऐसे ही काम करता है। कई सारे कंप्यूटर्स को जोड़कर एक छोटा कंप्यूटर नेटवर्क बनाया जाता है, और फिर ऐसे कई सारे छोटे कंप्यूटर नेटवर्क्स को आपस में जोड़कर बड़ा कंप्यूटर नेटवर्क बना दिया जाता है।

पर इंटरनेट को तैयार करने के लिए केवल हार्डवेयर डिवाइसेज ही नहीं बल्कि कई तरह के सॉफ्टवेयर भी चाहिए होते हैं।

आमतौर पर यह समझा जाता है कि इंटरनेट के अंदर डाटा एक स्ट्रीम यानी एक धारा की तरह फ्लो होता है यानी कि कंप्यूटर से इंटरनेट केबल जुड़ा हुआ है तो सारा डाटा कंप्यूटर से होता हुआ केबल के जरिए दूसरे कंप्यूटर तक जाता होगा। यह बिल्कुल सुनने में ऐसा लगता है जैसे पानी के पाइप में पानी एक जगह से दूसरी जगह तक जाता है। हकीकत में इंटरनेट कुछ इसी तरह से काम करता है, पर यहां छोटा सा फर्क है इंटरनेट में डाटा एक धारा की तरह नहीं बहता है बल्कि सारा डाटा छोटे-छोटे डाटा पैकेट्स में बदल जाता है और ये पैकेट्स internet medium के अंदर बहते हुए एक जगह से दूसरी जगह तक जाते हैं।

इंटरनेट जिस तरह से काम करता है, उसे पैकेट राउटिंग नेटवर्क कहते हैं।

यहां पैकेट का मतलब डाटा पैकेट से है। इन पैकेट की साइज फिक्स होती है जैसे कि वह कितने केबी या एमबी का हो सकता है, यह पहले से तय होता है ज्यादातर इन पैकेट्स की साइज 1000 से 3000 केरेक्टर्स के बीच की होती है।

राउटींग का मतलब डाटा पैकेट्स किस तरह से एक कंप्यूटर से बाकी सारे कंप्यूटर तक पहुंचेंगे यह प्रोसेस राउटिंग कहलाता है। इसके लिए कई तरह के हार्डवेयर डिवाइसेज का इस्तेमाल किया जाता है। इन हार्डवेयर डिवाइसेज को ही राउटर्स कहा जाता है। जब होस्ट कंप्यूटर से डाटा निकल के डेस्टिनेशन कंप्यूटर तक जाता है तो इस डाटा पैकेट को इंटरनेट के महाजाल से होकर निकलना पड़ता है, तो source या होस्ट computer से निकलकर डाटा पैकेट किस तरह अलग-अलग नेटवर्क को पार करते हुए डेस्टिनेशन तक पहुंचेगा यही काम राउटर्स करते हैं।

डाटा पैकेट को अपनी पूरी यात्रा में कई तरह के राउटर से होकर गुजरना पड़ता है। जब एक राउटर से निकल के डाटा पैकेट दूसरे राउटर तक जाता है तो इसे होप (hop) कहा जाता है।

इंटरनेट मैं कम्युनिकेशन कैसे होता है?

यहां कम्युनिकेशन का मतलब यह है कि कैसे दो कंप्यूटर आपस में इंटरनेट के जरिए डाटा ट्रांसफर कर सकते हैं।

इंटरनेट काम कैसे करता है, यह समझने के लिए सबसे पहले हमें इसकी टर्मिनोलॉजी या तकनीक को समझना होगा।

इसके लिए हम एक उदाहरण लेते हैं। सपोज कीजिए आप एक शहर में रहते हैं, शहर बहुत बड़ा है, शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने के लिए कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। आप शहर के एक कोने में रहते हैं। आपको शहर के दूसरे कोने में जाना है जो लगभग 40 किलोमीटर दूर है। आप अपनी कार में बैठकर दूसरे कोने में जाने के लिए निकलते हैं। अगर आपके पास में दूसरे कोने में कहां जाना है वह एड्रेस ही ना हो तो, इसलिए सबसे पहले हमारे पास एड्रेस होना जरूरी है, फिर हम कार में बैठ के दूसरे एड्रेस तक जाने के लिए लगभग 40 किलोमीटर का सफर तय करेंगे। रास्ते में कई सारे चौराहे आएंगे, इन चौराहों से हम लेफ्ट या राइट या सीधा टर्न लेकर आगे बढ़ेंगे कई सारे गलियों से होते हुए हाईवे से होते हुए हम हमारी मंजिल तक पहुंचेंगे। इंटरनेट के अंदर भी बिल्कुल कुछ इसी तरह से डाटा पैकेट एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं।

Client Server Internet

सबसे पहले इसमें क्लाइंट कंप्यूटर, होस्ट कंप्यूटर को डाटा रिक्वेस्ट करता है। यह रिक्वेस्ट पूरा लंबा ट्रैवल करते हुए होस्ट कंप्यूटर तक पहुंचती है और होस्ट कंप्यूटर अपने सिस्टम में मौजूद डाटा को कैलकुलेट करता है और इस सारे डाटा को कई सारे छोटे-छोटे डाटा पैकेट में बदल देता है। अब यह सारे डाटा पैकेट एक-एक करके इंटरनेट मीडिया के जरिए होते हुए क्लाइंट कंप्यूटर तक पहुंच जाएंगे।

इनमें से हरेक डाटा पैकेट के ऊपर क्लाइंट कंप्यूटर का आईपी एड्रेस लिखा होता है, उसके साथ ही जब कोई एक ही डाटा कई सारे छोटे-छोटे डाटा पैकेट में बदल जाता है तो सारी डाटा पैकेट्स पर सीक्वेंस नंबर डाल दिए जाते हैं जेसे 1,2,3। इससे जब ये डाटा पैकेट इंटरनेट मीडियम या इंटरनेट जाल से होते हुए होस्ट कंप्यूटर से क्लाइंट कंप्यूटर तक जाते हैं तो पूरे रास्ते में कई सारे राउटर्स इन्हे मिलते हैं। यह राउटर्स बिल्कुल हमारे चौराहों की तरह है जहां से यह डाटा पैकेट आगे वाले रास्ते की तरह मोड़ दिए जाते हैं या सीधे भेज दिए जाते हैं।

राउटर्स इन डाटा पेकैट के ऊपर लिखे हुए क्लाइंट कंप्यूटर के आईपी एड्रेस से डिसाइड करते हैं किन डाटा पैकेट्स को आगे कहां भेजना है और इन पर लिखे हुए सीक्वेंस नंबर से पता लगता है कि किसी एक राउटर्स से क्या सारे डाटा पैकेट निकल चुके हैं या कोई डाटा पैकेट मिस हो गया है, अगर कोई भी डेटा पैकेट मिस हो जाता है तो उसकी इनफार्मेशन फिर से होस्ट कंप्यूटर पर भेज दी जाती है और वहां से फिर से मिसिंग वाला डाटा पैकेट सेंड कर दिया जाता है जो कि उन राउटर्स से होता हुआ क्लाइंट कंप्यूटर तक पहुंच गए बाकी सारे डेटा पैकेट के साथ जुड़ जाता है। इस तरह से कई जीबी में मौजूद डाटा भी छोटे-छोटे डेटा पैकेट्स में बदलकर होस्ट कंप्यूटर से क्लाइंट कंप्यूटर तक आसानी से पहुंच जाता है।

इंटरनेट मीडियम या इंटरनेट मायाजाल कई जगह पर तो बहुत बड़े कनेक्शंस के साथ मौजूद होता है जिनकी स्पीड कई एमबीपीएस / सेकंड की होती है और कहीं जगह पर यह इंटरनेट महाजाल बहुत ही छोटे नेटवर्क में मौजूद होता है जहां पर स्पीड कुछ केबीपीएस की होती है, पर इन दोनों ही माध्यम से होते हुए हमारा डाटा किसी भी तरह होस्ट कंप्यूटर से क्लाइंट कंप्यूटर तक पहुंच ही जाता है। यहां पर बड़े नेटवर्क हमारे हाईवेज की तरह है और छोटे नेटवर्क हमारी गलियों, छोटी सड़कों की तरह होते हैं, जहां थोड़ी-थोड़ी दूरी पर किसी खास डायरेक्शन में जाने के लिए इंडिकेटर्स लगे होते हैं जैसे कि किसी खास जगह तक जाने के लिए निशान या उनकी दूरी उसी तरह से राउटर्स भी डाटा पैकेट के ऊपर लिखे हुए कंप्यूटर के आईपी एड्रेस करके उनका डायरेक्शन बदल देते हैं।

पर यह सब कुछ इतनी स्पीड से होता है कि हमें पता ही नहीं लगता जैसे कि 4 जी आने के बाद से डाटा इतनी स्पीड से काम करने लगा है कि हम क्लाइंट कंप्यूटर से बैठे-बैठे होस्ट कंप्यूटर को रिक्वेस्ट भेजते हैं और हॉस्ट कंप्यूटर से हमारा रिक्वेस्ट किया हुआ डाटा बहुत तेजी से हमारे क्लाइंट कंप्यूटर तक पहुंच जाता है। पर कभी-कभी जिस तरह हमारे दुनिया में सड़कों पर ट्रैफिक लगता है उसी तरह इंटरनेट महाजाल में भी ट्रैफिक जाम का इशू हो जाता है, जब कई सारे डाटा पैकेट एक साथ इन मीडियम या इन महाजाल को यूज करते हैं तो वहां पर भी जाम हो जाता है ऐसी कंडीशन में क्लाइंट कंप्यूटर पर डाटा बफरिंग दिखाता है इसका मतलब यह है की होस्ट कंप्यूटर से डाटा निकल चुका है पर अभी तक क्लाइंट कंप्यूटर पर नहीं पहुंचा है पर कभी भी पहुंच सकता है

जब भी हॉस्ट कंप्यूटर पर किसी भी बड़े डाटा को छोटे छोटे पैकेट में बदला जाता है तो टोटल डाटा को कितने छोटे पैकेट में बांटा गया है, यह पैकेट सीक्वेंस में कितने हैं, इन पर कितने सीक्वेंस नंबर लिखे हुए हैं, और कंप्यूटर्स का आईपी एड्रेस क्या है, और यह सारे डाटा पैकेट किस जगह से या कौन सा रास्ता यूज़ करते हुए क्लाइंट कंप्यूटर तक जाएंगे, यह सारी इनफार्मेशन पहले ही एक डाटा पैकेट में क्लाइंट कंप्यूटर तक पहुंचा दी जाती है ताकि क्लाइंट कंप्यूटर को पता रहै कि टोटल कितने डाटा पैकेट रिसीव होंगे और उन्हें कौन से सीक्वेंस में अरेंज करना होगा ताकि फिर से डाटा फाइल उसी रूप में आ सके जिस रूप में होस्ट कंप्यूटर से चली थी।

क्लाइंट कंप्यूटर किस तरह से डेटा की रिक्वेस्ट भेजेगा, होस्ट कंप्यूटर किस तरह से मौजूदा डाटा को छोटे-छोटे डाटा पैकेट में बदलेगा, कैसे यह डाटा पैकेट की साइज डिसाइड होगी, इन्हें किस तरह के सिक्वेंस में जमाया जाएगा, होस्ट कंप्यूटर से लेकर के क्लाइंट कंप्यूटर तक के बीच में रूट या रास्ता कैसे डिसाइड होगा, किस तरह के इंटरनेट मीडिया को यूज करके यह सारे डाटा पैकेट क्लाइंट कंप्यूटर तक पहुंचेंगे, क्लाइंट साइड पर छोटे-छोटे डाटा पैकेट मिलकर फिर से ओरिजिनल डाटा कैसे बनाएंगे, यह सारी चीजें जिन नियम या रेगुलेशंस की मदद से होता है उन्हें ही प्रोटोकॉल कहते हैं। मुख्यतया इंटरनेट के लिए दो प्रोटोकॉल्स का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है, टीसीपी / आईपी प्रोटोकोल। यहां टीसीपी का मतलब ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकोल है और आई पी का मतलब इंटरनेट प्रोटोकॉल है।

टीसीपी या ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकोल होस्ट कंप्यूटर या क्लाइंट कंप्यूटर में मुख्य डाटा छोटे-छोटे डाटा पैकेट में कैसे कन्वर्ट होगा, किसी स्पीड से भेजा जाएगा, क्या सिक्वेंस नंबर होंगे, यह सब चीजें ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकोल के अंतर्गत डिसाइड या तय होती है।

इंटरनेट प्रोटोकॉल यह तय करता है की डाटा पैकेट कोनसा रास्ता इस्तेमाल करेंगे, कौन से राउटर्स इन्हे केसे डाइवर्ट करेंगे, मोजुदा इंटरनेट की स्पीड क्या है उसके अनुसार कितने डाटा पैकेट एक बार में जाएंगे या कितने डाटा पैकेट एक बार में इकट्ठे होंगे, यह सब इंटरनेट प्रोटोकोल डिसाइड करता है।

जब होस्ट कंप्यूटर से डाटा क्लाइंट कंप्यूटर तक जाता है तो वह टेक्स्ट या केरेक्टर की शेप में नहीं जाता है बल्कि पूरा डाटा इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलस में बदल जाता है। यह सिग्नल डाटा पैकेट के अंदर एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं ऐसी कंडीशन में टीसीपी आईपी प्रोटोकोल ही अल्फाबेट्स को सिग्नल में और सिग्नल को अल्फाबेट्स में बदलते हैं।

आईपी एड्रेस: जिस तरह हमारी दुनिया में हर घर का कुछ एड्रेस होता है उसी तरह इंटरनेट की दुनिया में हर कंप्यूटर का भी एक एड्रेस होता है यह एड्रेस नंबर की शेप में होता है उसको उस कंप्यूटर का आईपी एड्रेस या इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस कहते हैं।

इंटरनेट के लिए काम आने वाली हार्डवेयर डिवाइसेज

वैसे तो इंटरनेट में काम आने वाली हार्डवेयर डिवाइस से सभी परिचित होंगे, जैसे कि कोई भी मोबाइल या हैंडहेल्ड डिवाइस या फिर कंप्यूटर पर इन सबके अलावा सेटेलाइट, सर्वर, राउटर्स, टॉवर्स, केबल या मीडिया सभी हार्डवेयर डिवाइसेज में ही आते हैं जो इंटरनेट को कनेक्ट करने का काम करते है।

कंप्यूटर या हैंडहेल्ड डिवाइसेज को 2 भागो में बांटा गया है पहला होस्ट कंप्यूटर दुसरा क्लाइंट या रिसीवर कंप्यूटर।

होस्ट कंप्यूटर: जिस कंप्यूटर में मौजूद डेटा हमें चाहिए होता है उसे ही होस्ट कंप्यूटर कहते हैं। इसके लिए हमें क्लाइंट कंप्यूटर से एक रिक्वेस्ट भेजनी होती है जो उस कंप्यूटर के पास आती है अगर उस कंप्यूटर के पास वह डाटा है तो वह कन्फर्मेशन रिप्लाई भेजता है उसके बाद ही होस्ट कंप्यूटर से निकल कर डेटा रिसीवर या क्लाइंट कंप्यूटर तक जाता है।

रिसीवर या क्लाइंट कंप्यूटर: जिस कंप्यूटर का इस्तेमाल करके यूजर डाटा को होस्ट कंप्यूटर से मंगवा देता है और उस पर अपना काम करता है, उसे ही रिसीवर या क्लाइंट कंप्यूटर कहते हैं।

होस्ट कंप्यूटर और क्लाइंट कंप्यूटर दोनों का ही इंटरनेट से जुड़ा होना बहुत जरूरी है।

नेटवर्क: जब दो कंप्यूटर या हैंड होल्ड डिवाइस किसी मिडिया की मदद से आपस में जुड़ जाती है और डाटा ट्रांसफर शुरू हो जाता है, तब इसे ही नेटवर्क कहा जाता है। नेटवर्क दो तरह के होते हैं प्राइवेट और पब्लिक।

प्राइवेट नेटवर्क किसी खास आर्गेनाइजेशन के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है जिसे हर कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता। अगर आप इस प्राइवेट नेटवर्क का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपके पास उसका पासवर्ड होना चाहिए।

पब्लिक नेटवर्क में कोई पासवर्ड नहीं होता कोई भी व्यक्ति इन नेटवर्क से जुड़ सकता है।

सर्वर: सर्वर भी एक तरह का कंप्यूटर ही होता है, लेकिन इस कंप्यूटर का सीपीयू आम कंप्यूटर के मुकाबले काफी बड़ा और हर मामले में बहुत एडवांस होता है। इसमें कई गुना ज्यादा तक डेटा स्टोर हो सकता है, जिसकी काउंटिंग टेराबाइट्स में होती है आमतौर पर होस्ट कंप्यूटर सर्वर भी हो सकते हैं।

मीडिया या मीडियम: जब दो कंप्यूटर्स को आपस में जोड़ा जाता है तो उसके लिए हमें किसी मीडियम की जरूरत होती है यह मीडियम कोई केबल हो सकती है या कोई वाईफाई नेटवर्क या कोई रेडियो वेव्स भी हो सकती है। किसी भी तरह से जब दो कंप्यूटर को आपस में जोड़ दिया जाए तो उनके बीच में मौजूद यह वायर्स या रेडियो वेव्स या वाईफाई नेटवर्क ही मीडियम या मीडिया कहलाती है।

मिडिया दो तरह की होती है गाइडेड और अनगाइडेड मिडिया।

गाइडेड मीडिया से यहां मतलब फिजिकल डिवाइस है जैसे कि केबल्स चाहे फिर वह ऑप्टिकल फाइबर केबल हो टेलिफोन लाइंस।

अनगाइडेड मीडिया का मतलब रेडियो वेव्स के इस्तेमाल से है जो बिना किसी केबल की मदद से दो डिवाइसेज को आपस में जोड़ देती हैं। यह कनेक्शन किसी इंटरनेट नेटवर्क या वाईफाई की मदद से जोड़ दिया जाता है। अनगाइडेड मीडिया का सबसे बेहतर एग्जांपल वॉकी टॉकी है जो कि कुछ दूरी तक के लिए आपस में रेडियो वेव्स के जरिए कनेक्ट हो जाते हैं। मोबाइल्स अनगाइडेड मीडिया का एक बेहतरीन उदाहरण है, जहां पर लाखों किलोमीटर की दूरी पर भी दोनों मोबाइल आपस में कनेक्ट हो जाते हैं।

आईएसपी (ISP) इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर: वैसे तो इंटरनेट इतना बड़ा एक महाजाल है इसका कोई भी परमानेंट मालिक नहीं है, बल्कि कई सारे संगठन मिलकर इंटरनेट को चलाते हैं लेकिन फिर भी जब हमे खुद को इंटरनेट से कनेक्ट करना हो तो उसके लिए हमें हमारे आसपास मौजूद किसी आईएसपी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर से जुड़ना होता है उदाहरण के तौर पर हमारे चारों तरफ इंटरनेट मौजूद है इंटरनेट यूज करना हो तो हमें किसी भी मोबाइल नेटवर्क से इंटरनेट का रिचार्ज करवाना होता है। यहां जिन कंपनियों से रिचार्ज करते हैं वही हमारे लिए इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर है।

इंटरनेट स्पेक्ट्रम: जिस तरह से आधा इंच की चौड़ाई वाले पाइप में पानी कम आएगा लेकिन वहीं अगर 1 मीटर चौड़ाई का पाइप ले लिया जाए तो उसमें पानी की तादाद बहुत ज्यादा होगी उसी तरह इंटरनेट जब वायरलेस या वायर मीडिया की मदद से एक जगह से दूसरी जगह तक जाता है तो किस तरह के मीडिया का इस्तेमाल होता है यह बहुत मायने रखता है।

रेडियो वेव्स या इंटरनेट वेव्स जब एक जगह से दूसरी जगह तक हवा में बहती हुई जाती है तो वह कितनी मोटाई का कितनी साइज का नेटवर्क एरिया कवर करते हुए चलती है इसे ही इंटरनेट स्पेक्ट्रम कहते हैं इंटरनेट स्पीड जितना पावरफुल होगा उससे मिलने वाले कनेक्शन से इंटरनेट की स्पीड भी उतनी ही पावरफुल होगी।

इंटरनेट के प्रकार

2g 3g 4g 5g

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यहां पर हम जिन इंटरनेट के प्रकार की बात करने वाले हैं आप सब से ज्यादातर परिचित होंगे। हम बात कर रहे हैं 2जी स्पेक्ट्रम, 3जी स्पेक्ट्रम, 4जी स्पेक्ट्रम।

इनमें सबसे बड़ा फर्क इनकी स्पीड को और क्वालिटी को लेकर के है। 2G स्पेक्ट्रम सबसे शुरुआत में आने वाली इंटरनेट कनेक्शन की स्पीड काफी कम थी और क्वालिटी भी अच्छी नहीं थी। 3जी स्पेक्ट्रम उसके बाद और अब 4G स्पेक्ट्रम आ चुका है, तो आप खुद इंटरनेट की स्पीड को महसूस कर सकते हैं और क्वालिटी भी पहले से कई गुना ज्यादा हो चुकी है। बहुत जल्दी इंडिया में भी 5G नेटवर्क लॉन्च हो जाएगा तब इंटरनेट की स्पीड इतनी कमाल की होगी की की जीबी साइज वाले डेटा भी आसानी से डाउनलोड हो जाएगा।

ओ एस आई (OSI) मॉडल:

होस्ट कंप्यूटर और क्लाइंट कंप्यूटर पर किस तरह से डाटा सेलेक्ट होगा, डेटा इलेक्ट्रिक सिगनल्स में कैसे बदलेगा, कितने डाटा पैकेट में कन्वर्ट होगा, यह सब कुछ TCP/IP कंट्रोल करते हैं उनके कंबाइंड मॉडल को या OSI model बोल सकते हैं। वह एप्लीकेशन इंटरनेट की सारी गतिविधियों को कंट्रोल करती है, उसे ही ओ एस आई मॉडल कहते हैं। औ एस आई मॉडल मल्टी टास्किंग सिस्टम पर काम करता है जो कि अलग-अलग तरह के कामों के लिए जिम्मेदार होता हैं।

इंटरनेट का मालिक कौन है, या इंटरनेट किस कंपनी का प्रोडक्ट है?

जैसा कि हमने पढ़ा इंटरनेट कोई एक नेटवर्क नहीं बल्कि कई सारे छोटे-छोटे नेटवर्क से बना हुआ बहुत विशाल स्तर का नेटवर्क है। यह किसी एक कंपनी का प्रोडक्ट नहीं है बल्कि इंटरनेट क्षेत्र में कई बड़ी कंपनियां हैं जो मिलकर स्टोर गाती है प्रणाम कैसे हो कनेक्शन बने हुए हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों में नेट की स्पीड उसके इस्तेमाल पर जा सकते हैं ताकि इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सके

इंटरनेट का इस्तेमाल कहां कहां होता है

आज के समय में शायद ही कोई ऐसा होगा जो इंटरनेट का इस्तेमाल करना ना जानता होगा। आम आदमी से लेकर के स्पेस में मौजूद बड़े से बड़े सेटेलाइट तक हर जगह इंटरनेट की वजह से कनेक्टिविटी संभव हो सकी है। चाहे सोशल मीडिया हो या फिर ऑनलाइन मार्केटिंग, चाहे एजुकेशन एंड रिसर्च या फिर ऑनलाइन गेम, इनमें भी इंटरनेट इस्तेमाल होता है। इंटरनेट का आविष्कार होने के बाद से ज्यादातर कंपनियों का काम अब पूरी तरह से ऑनलाइन हो चुका है। अब तो इंटरनेट की की वजह से तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में कई बड़े बदलाव आए हैं। इंटरनेट की महत्वता कितनी है यह आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि यह ब्लॉग भी आप ऑनलाइन ही पढ़ रहे हैं। साधारण भाषा में कहें तो इंटरनेट आज के समय की बहुत जरूरत बन चुकी है जिसके थोड़ी सी देर के लिए बंद हो जाने पर भी दुनिया की गति जैसे रुक ही जाती है।

इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए हमारे पास कोनसी हार्डवेयर डिवाइसेज होनी चाहिए?

इंटरनेट का इस्तेमाल करने के लिए हमारे पास में एक कंप्यूटर या मोबाइल या फिर कोई भी ऐसी हैंडहेल्ड डिवाइस होनी चाहिए जो इंटरनेट से कनेक्ट हो सके, उसके बाद में हमारे पास में कोई मीडिया होना चाहिए या तो यह फिजिकल मीडिया हो या वर्चुअल मीडिया यानी कि या तो किसी केबल के मदद से या टेलीफोन लाइन, फाइबर ऑप्टिक्स की मदद से इंटरनेट से कनेक्ट कर सके। या फिर हमारी डिवाइसेज में वायरलेस मीडिया में कनेक्ट होने की कैपेबिलिटी होनी चाहिए जैसे कि मौजूदा वाईफाई नेटवर्क से जुड़ जाना या आसपास के हॉटस्पॉट से जुड़ जाना।

इसके अलावा इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए हर डिवाइस के अंदर एक एप्लीकेशन आती है जिसे ब्राउज़र बोलते हैं। बिना वेब ब्राउजर के इंटरनेट इस्तेमाल करना काफी मुश्किल हो जाएगा। मोजिला फायरफॉक्स, गूगल क्रोम, इंटरनेट एक्सप्लोरर आदि वेब ब्राउज़र की कुछ एग्जांपल है।

इंटरनेट से जुड़ी हुई क्या सारी जानकारी आपको कैसी लगी और अगर इसके बारे में कोई भी सवाल है तो हमें कमेंट में लिखकर जरूर बताइएगा।

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