आईपी एड्रेस क्या है? – IP Address in Hindi

आज हम जिस विषय पर बात करने वाले हैं, वह है आईपी ऐड्रेस (IP ADDRESS)।

जैसा कि हम सभी जानते हैं, आज के समय में इंटरनेट कम्युनिकेशन का और इंफॉर्मेशन एक्सचेंज करने का सबसे पावरफुल मीडियम है। लेकिन इंटरनेट से जुड़ने के लिए हमें कुछ डिजिटल डिवाइसेज काम में लेनी होती है, जैसे कि कंप्यूटर, लैपटॉप या फिर स्मार्टफोंस। इन डिवाइसेज की मदद से ही हम इंटरनेट को एक्सेस कर सकते हैं और किसी भी तरह की जानकारी डाउनलोड कर सकते हैं या फिर अपलोड भी कर सकते हैं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है की दुनिया में कितनी डिजिटल डिवाइसेज इंटरनेट से जुड़ी होंगी? मेरे ख्याल से गिनती करने का भी कोई फायदा नहीं है। यह अनगिनत है।

आईपी एड्रेस क्या है? – IP Address in Hindi

आईपी एड्रेस क्या होता है - IP Address in Hindi

इतने सारे डिजिटल डिवाइसेज में से जब भी हमें किसी दूसरी डिवाइस से जुड़ना होता है तो हमें उस डिजिटल डिवाइस की लोकेशन या उस डिवाइस का का एड्रेस पता होना चाहिए। यही एड्रेस दरअसल उस डिजिटल डिवाइस का आईपी ऐड्रेस कहलाता है।

आईपी एड्रेस की फुल फॉर्म होती है इंटरनेट प्रोटोकोल एड्रेस।

इसे आसानी से समझने के लिए हमें एक उदाहरण लेते हैं। हमारी असली दुनिया में हम जिस घर में रहते हैं उस घर का एक एड्रेस है। इसमें घर का नंबर, गली का नंबर, इलाके का नाम, शहर का नाम और राज्य का नाम शामिल होता है, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो देश का भी नाम लिखा होता है। बिल्कुल उसी तरह से इंटरनेट की दुनिया में हर डिजिटल डिवाइस का एक अलग आईपी एड्रेस होता है। इस ip-address की मदद से ही उस डिजिटल डिवाइस की लोकेशन आसानी से पता की जा सकती है। सिर्फ यही नहीं आईपी एड्रेस किसी भी कंप्यूटर का कनेक्टिंग लिंक होता है। अगर हमारे पास किसी डिजिटल डिवाइस का आईपी एड्रेस नहीं है, तो हम उस डिजिटल डिवाइस से कनेक्ट भी नहीं हो पाएंगे। यहां तक कि हमारे पास मौजूद हर डिजिटल डिवाइस का भी एक आईपी एड्रेस होगा। यहां तक कि उस स्मार्टफोन का या उस लैपटॉप या कंप्यूटर का भी आईपी ऐड्रेस मौजूद है जिसकी मदद से अभी आप हमारा यह ब्लॉग पढ़ पा रहे हैं। हर डिवाइस का आईपी एड्रेस अपने आप में बिल्कुल यूनिक होता है। इसलिए इन सभी डिवाइसेज को एक दूसरे से अलग अलग पहचान पाना काफी आसान हो जाता है।

आईपी एड्रेस को शॉर्ट में आईपी (IP) भी कहते हैं। आईपी एड्रेस सिर्फ इन डिवाइसेज के लिए ही नहीं बल्कि हमारे लिए भी बहुत ही ज्यादा फायदेमंद होता है। दरअसल जब भी हम इंटरनेट पर कोई भी चीज सर्च करते हैं तो हम किसी भी वेब ब्राउज़र में या सर्च इंजन में जाकर के उस चीज का एड्रेस या फिर उसका लिंक डाल कर उसे इंटरनेट के महाजाल में सर्च करते हैं। दरअसल यह लिंक ही उस कंप्यूटर का एड्रेस ढूंढता है जहां पर हमारी जरूरत का डाटा मौजूद है या जिसे हम सर्च कर रहे हैं। और यह लिंक दरअसल उस कंप्यूटर के आईपी एड्रेस को ढूंढता है और एक बार भी एड्रेस मिल जाने के बाद उस कंप्यूटर के एड्रेस पर पहुंचकर उससे कनेक्ट हो जाता है।

इस चीज को और ज्यादा बेहतर तरीके से समझने के लिए आप हमारा लिखा हुआ ब्लॉग “इंटरनेट क्या है” पढ़ सकते हैं। जिसमें हमने इसके बारे में विस्तार से बताया है। यहां पर मैं इसके बारे में संक्षिप्त में थोड़ा सा बताना चाहूंगा की हकीकत में इंटरनेट में जब दो डिजिटल डिवाइस आपस में कनेक्ट होती है तो एक दूसरे को इंफॉर्मेशन भेज या रिसीव करती है। यह सारी इनफार्मेशन छोटी-छोटी डाटा पैकेट के रूप में शामिल रहती है और यह डाटा पैकेट दरअसल दोनों डिजिटल डिवाइसेज के आईपी एड्रेस को फॉलो करते हुए इंटरनेट के महाजाल में परिवहन करते हैं।

तो अब सवाल यह आता है कि अगर इतनी सारी डिजिटल डिवाइसेज और उनके इतने सारे आईपी एड्रेस मौजूद है, तो इतने सारे आईपी एड्रेस को कंट्रोल या मैनेज कौन करता है। यह काम दरअसल कंप्यूटर डोमेन नेम सर्विस प्रोवाइडर (Domain Name Service Provider) करता है, जिसे शॉर्ट में डीएनएस (DNS) भी कहते हैं। यह डीएनएस ही सभी डिजिटल डिवाइसेज के आईपी एड्रेस को एक फोन बुक की तरह स्टोर करके रखता है।

आईपी एड्रेस एक न्यूमैरिक वैल्यू होती है, जो चार हिस्सों में बंटी होती है। यह कुछ निम्नलिखित तरीके से दिखाई देती है:

792.164.101.109

यह एक काफी लंबा न्यूमैरिक संगठन है, ऐसा इसलिए है क्योंकि पूरी दुनिया में अनगिनत कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल्स और इसी तरह की ना जाने कितनी डिजिटल डिवाइसेज है। इनमें से हर एक का आईपी एड्रेस दूसरे से बिल्कुल अलग होता है, इसलिए आईपी एड्रेस की वैल्यू इतनी बड़ी हो जाती है। उदाहरण के तौर पर अगर हमारे पास में एक प्रिंटर है, अगर हम उसे हमारे लैपटॉप या कंप्यूटर से वाई-फाई के जरिए जोड़ना चाहते हैं तो हमें उसे प्रिंटर का आईपी ऐड्रेस हमारे लैपटॉप के आईपी एड्रेस के साथ कनेक्ट करना होगा। तभी यह दोनों डिवाइसेज वाई-फाई के जरिए आपस में जुड़ पाएगी और फिर हम कंप्यूटर से जो भी प्रिंट करना चाहते हैं उस प्रिंटर से खुद-ब-खुद प्रिंट हो जाएगा।

आईपी एड्रेस काम कैसे करता है?

आईपी एड्रेस काम कैसे करता है

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आईपी एड्रेस की सारी संख्याओं को मुख्यतः दो हिस्सों में बांटा जाता है जोकि निम्नलिखित हैं:

नेटवर्क पार्ट: इनमें से नेटवर्क पार्ट दरअसल यह बताता है की यह आईपी एड्रेस किस चीज का है। यानी कि इस आईपी एड्रेस से कनेक्ट होने पर हमें किस चीज की जानकारी मिलेगी या किस डिवाइस से हम कनेक्ट होंगे।

होस्ट पार्ट: होस्ट पार्ट उस डिवाइस या उस चीज का असली एड्रेस होता है। यहां यह असली एड्रेस उस डिवाइस या उस चीज का डिजिटल एड्रेस है।

उदाहरण के तौर पर अगर आप हमारी वेबसाइट नॉलेज इन हिंदी (Knowledge in hindi) को एक्सेस करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको गूगल पर इस वेबसाइट को सर्च करना होगा। गूगल इस वेबसाइट का लिंक आपके सामने रख देता है। उस लिंक पर क्लिक करने से आपकी डिजिटल डिवाइस और हमारी वेबसाइट के सर्वर के बीच में एक कनेक्शन एस्टेब्लिश हो जाता है। अगर इस कनेक्शन की बात करें तो इस कनेक्शन के दोनों हिस्सों पर दो आईपी एड्रेस मौजूद होंगे, एक हमारी डिवाइस का आईपी एड्रेस दूसरा सर्वर का आईपी ऐड्रेस। हम यह मानते हैं कि हमारे सर्वर का ip-address निम्नलिखित है: 001.102.93.614

और आपके डिवाइस का आईपी ऐड्रेस निम्नलिखित है: 101.509.236.714

जब आपकी डिवाइस हमारे सर्वर से कनेक्ट होने की कोशिश करते हैं तो दरअसल आपके पूरे ip-address से सबसे पहले हमारे सर्वर के नेटवर्क पार्ट को एक्सेस किया जाता है, जैसा नीचे दिया हुआ है।

101.509.236.714—–>001.102

एक बार यह कनेक्शन स्थापित होने के बाद में हमारा सर्वर आपके डिजिटल डिवाइस से अभी कनेक्टिविटी करता है जोकि निम्नलिखित है:

001.102.93.614——>101.509

इस पूरे प्रोसेस में आपकी डिजिटल डिवाइस को यह पता लग जाता है कि यह आईपी एड्रेस नॉलेज इन हिंदी के सर्वर का आईपी एड्रेस है और हमारे सर्वर को भी यह पता लग जाता है कि जिस आईपी एड्रेस ने उससे कनेक्शन स्थापित किया है वह एक होस्ट डिवाइस या डिजिटल डिवाइस है जैसे कि लैपटॉप या मोबाइल।

अब दूसरे चरण में आपकी डिजिटल डिवाइस का आईपी एड्रेस हमारे सर्वर के पूरे आईपी एड्रेस को एक्सेस करेगा, जोकि निम्नलिखित है :

101.509.236.714——->001.102.93.614

इस प्रोसेस में आपकी डिजिटल डिवाइस को यह पता लग जाएगा कि इस सर्वर पर नॉलेज इन हिंदी वेबसाइट का डाटा अवेलेबल है। क्योंकि यहां 001.102 हमारे सर्वर का एड्रेस है, और 93.614 नॉलेज इन हिंदी वेबसाइट का एड्रेस है, तो इन दोनों एड्रेस को मिलाने के बाद एक पूरा एड्रेस बनता है। यानी कि नॉलेज इन हिंदी का डाटा किस सर्वर पर मौजूद है, और उससे कनेक्ट कैसे करना है, यह काम एक ही आईपी एड्रेस से हो जाता है।

बिल्कुल इसी तरह हमारे सर्वर को भी यह पता लग जाता है कि जो डिजिटल डिवाइस उससे कनेक्ट हुई है, उसकी लोकेशन क्या है और किस यूजर ने किस उद्देश्य से यह डाटा मांगा है।

विशेष नोट: यहां इस्तेमाल किए गए ip-address पूर्ण रूप से काल्पनिक है। आईपी एड्रेस की न्यूमैरिक संख्या असली दुनिया में बिल्कुल अलग तरह से चलती है, पर हां हमने यहां केवल उसकी एक अस्थाई काॅपी न्यूमैरिक वैल्यू के रूप में दिखाई है।

अभी तक आपको यह समझ आ गया होगा कि बिना आईपी ऐड्रेस के कोई भी डिजिटल डिवाइस इंटरनेट से नहीं जुड़ सकती है।

आईपी एड्रेस 32 bit न्यूमेरिक एड्रेस पैटर्न को फॉलो करते हैं। यानी कि यह जो चार सेक्शन में नंबर लिखे हुए हैं इनमें से हर एक सेक्शन 8 बिट को सपोर्ट करता है। सभी जानते हैं कंप्यूटर की दुनिया में दो ही बीट होती है जीरो और वन। (0,1)

0 और 1 के कॉन्बिनेशन से ही बाकी सारी बाइट्स और डिजिट्स बनते हैं।

आईपी एड्रेस के प्रकार

आईपी एड्रेस एक ही तरह की नहीं बल्कि अलग-अलग तरह के होते हैं पर मुख्यतया इन्हें चार हिस्सों में बांटा गया है।

प्राइवेट आईपी ऐड्रेस (Private IP Addresses)

हमारे घरों में या ऑफिस में हमारा जो कंप्यूटर सिस्टम होता है, वह राउटर या मॉडेम से जुड़ा होता है। ऐसे सिस्टम के अंदर हमारे कंप्यूटर का जो आईपी एड्रेस होता है वही हमारा प्राइवेट आईपी ऐड्रेस हैं। साधारण भाषा में हर डिजिटल डिवाइस का खुद का जो आईपी एड्रेस होता है वह उसका प्राइवेट आईपी एड्रेस कहलाता है।

पब्लिक आईपी ऐड्रेस (Public IP Addresses)

पब्लिक आईपी एड्रेस ऐसी कंप्यूटर या डिजिटल डिवाइसेज को दिए जाते हैं, जिन्हें 1 से ज्यादा लोग इस्तेमाल करते हैं। हमने प्राइवेट आईपी एड्रेस में राउटर और मॉडेम के बारे में पढ़ा। राउटर और मॉडेम वो डिवाइसेज है, जो इंटरनेट प्रोवाइड करते हैं। अगर हमें इंटरनेट इस्तेमाल करनी है, तो हमें ऐसे राउटर या मॉडेम से कनेक्ट होना होगा। तो उस राउटर या मॉडेम का आईपी ऐड्रेस पब्लिक आईपी ऐड्रेस की केटेगरी में आएगा। क्योंकि ऐसी डिवाइस मल्टीपल कंप्यूटर या स्मार्टफोंस या अन्य कंप्यूटर डिवाइस को खुद से जोड़ सकती है जिस वजह से इनका खुद का तो एक ही आईपी एड्रेस होगा लेकिन इनसे अनगिनत डिवाइसेज जुड़ सकती है जो इंटरनेट का इस्तेमाल करके चलती हैं। अब यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि इसमें राउटर का आईपी एड्रेस तो पब्लिक आईपी एड्रेस है लेकिन उससे जुड़ी हुई हर डिवाइस का आईपी ऐड्रेस प्राइवेट आईपी ऐड्रेस है। साधारण शब्दों में राउटर और मॉडेम का आईपी ऐड्रेस पब्लिक आईपी एड्रेस है उसे जुड़ा हुआ कंप्यूटर का आईपी ऐड्रेस प्राइवेट आईपी ऐड्रेस हैं।

स्टैटिक आईपी ऐड्रेस (Static IP Addresses)

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है यह आईपी एड्रेस हमेशा एक जैसे रहते हैं कभी भी नहीं बदलते हैं, इसलिए इन्हें स्टैटिक या परमानेंट आईपी एड्रेस कहते हैं। दरअसल यह उन सर्वस के या डिजिटल डिवाइस के आईपी एड्रेस होते हैं जिन्हें इंटरनेट से एक बार कनेक्ट करने के बाद में फिर कभी भी डिस्कनेक्ट नहीं किया जाता है जिस वजह से इनका ip-address एक ही रहता है। हालांकि आजकल ऐसी डिवाइसेज भी मौजूद है कि उन्हें चाहे जितनी बार इंटरनेट से कनेक्ट करो, डिसकनेक्ट करो फिर भी उनका ip-address एक ही रहता है। ऐसा उनमें मौजूद वेब सर्वर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज की वजह से होता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि जब भी हम ऐसी किसी डिवाइस से कनेक्ट होना चाहते हैं तो हमें उसे ढूंढना नहीं पड़ता क्योंकि उसका आईपी एड्रेस स्टैटिक है तो बस हमें उस आईपी एड्रेस से डायरेक्ट कनेक्ट होना होता है।

विशेष नोट: किसी भी डिजिटल डिवाइस का आईपी ऐड्रेस जनरेट करना या किसी भी डिवाइस को उसके आईपी एड्रेस की मदद से ढूंढना या इंटरनेट से कनेक्ट करना यह सारा काम कंप्यूटर नेटवर्किंग के अंदर आता है और कंप्यूटर नेटवर्क इंजीनियर इस काम को अंजाम देते हैं। इसके लिए कई क्वालिफाइड कोर्स जैसे कि CCNA मौजूद है। इन सर्टिफिकेशन कोर्स को करने के बाद में कोई भी कंप्यूटर नेटवर्क इंजीनियर बन सकता है। आज के समय में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा डिमांड नेटवर्किंग इंजीनियर की ही होती है।

डायनेमिक आईपी ऐड्रेस (Dynamic IP Addresses)

अब यह तो सबसे आसान है, वह आईपी एड्रेस जो लगातार बदलते रहते हैं या फिर जो परमानेंट नहीं होते हैं वह इस केटेगरी में आते हैं। साधारण शब्दों में जब भी कोई डिजिटल डिवाइस इंटरनेट से जुड़ती है तो उसे एक आईपी एड्रेस मिलता है, लेकिन यह आईपी एड्रेस तभी तक काम करता है जब तक वह डिवाइस इंटरनेट से जुड़ी हुई है। एक बार इंटरनेट से डिसकनेक्ट होने पर आईपी एड्रेस डिलीट हो जाता है या यूं कहें तो खत्म हो जाता है। अगर वही डिजिटल डिवाइस फिर इंटरनेट से कनेक्ट होती है तो अब उसे फिर से एक नया आईपी एड्रेस दिया जाता है। इस तरह से जनरेट होने वाले टेंपरेरी आईपी एड्रेस डायनेमिक आईपी एड्रेस कहलाते हैं। कंप्यूटर की वर्चुअल दुनिया में साइबर सिक्योरिटी देने के हिसाब से यह बहुत कारगर सिस्टम है। क्योंकि जब किसी डिवाइस का आईपी एड्रेस परमानेंट नहीं होता है तो हर बार नया आईपी ऐड्रेस अपडेट होता है, तो इस डिवाइस को हैक करना या इन से कनेक्टिविटी करना थोड़ा सा मुश्किल होता है।

IPv4 और IPv6

IPv4 and IPv6

आईपी एड्रेस के दो सेगमेंट होते हैं ipv4 और ipv6 यहां v4, v6 में v का मतलब वर्जन है और लिखा हुआ नंबर इस का वर्जन नंबर है।

सबसे पहले ipv4 पैटर्न इस्तेमाल होते थे। पर पूरी दुनिया में अनगिनत डिजिटल डिवाइसेज मौजूद हैं व हर एक का यूनिक आईपी ऐड्रेस जनरेट करना ipv4 से पर्याप्त नहीं था इसीलिए ipv6 की रचना की गई।

Ipv4, 1983 में एप्रानेट के लिए इस्तेमाल किया गया था। इसे इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स ( Internet Engineering Task Force ) , IETF द्वारा बनाया गया था। इसका इस्तेमाल ओ एस आई (OSI) मॉडल में पॉकेट स्विचिंग के लिए लिंक लेयर में किया जाता है। यह लगभग पांच अलग-अलग तरह कि क्लासेज में पाया जाता है। यहां पर क्लास का मतलब सरंचना या नंबर पैटर्न से है। जिन्हें निम्नलिखित नाम दिए गए हैं:

Class A
Class B
Class C
Class D
Class E

ipv4, 32bit एड्रेस का उपयोग करता है, जिसके बारे में हम ऊपर पढ़ चुके हैं।

यह तीन तरह के ऐड्रेस को सपोर्ट करता है।

Unicast: एक बार मैं केवल एक आईपी ऐड्रेस को ही कांटेक्ट करना।

Broadcast: एक बार में मौजूद सभी आईपी एड्रेस को कांटेक्ट करना।

Multicast: एक बार में कई सारे चुने हुए आईपीएड्रेस को कांटेक्ट करना।

ipv4, VIRTUAL LENGTH SUBNET MASK (VLSML) के सपोर्ट से चलता है।

019.254.16.145 यह एक ipv4 IP address का उदाहरण हैं।

इसमें आईपी एड्रेस के 4 सेक्शन होते हैं जिन्हें डॉट (.) लगाकर के अलग किया जाता है।

इसमें सिर्फ और सिर्फ नंबर्स का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए यह एक सिर्फ न्यूमेरिक एड्रेस सिस्टम है।

इसमें हर सेक्शन की संख्या 0 से 255 तक हो सकती है।

इसमें लगभग 4,294,967,296 आईपी एड्रेस जनरेट किए जा सकते हैं। और अब सबसे चौंकाने वाली बात, ipv4 के यह सारे एड्रेस फुल हो चुके हैं। यानी कि सभी इस्तेमाल किए जा चुके हैं। हैं ना चौंकाने वाली बात। इसलिए ipv6 का इस्तेमाल किया जाता है।

ipv6 का इस्तेमाल 1994 में शुरू किया गया था और इसे भी IETF ने हीं शुरू किया था। शुरुआत में इसे इंटरनेट प्रोटोकॉल नेक्स्ट जनरेशन (Internet Protocol Next Generation) IPNG भी कहा जाता था, और आज भी अक्सर इसे इसी नाम से बुलाया जाता है। यह नेटवर्क लेयर प्रोटोकोल में नेटवर्क लेयर पर डाटा कम्युनिकेशन के लिए इस्तेमाल होता है।

विशेष नोट: ओ एस आई मॉडल और नेटवर्क लेयर मॉडल दरअसल इंटरनेट की दुनिया में इस्तेमाल होने वाले कुछ विशेष डाटा मॉडल है जो कि इंटरनेट की तकनीकों को आसान बनाते हैं।

यह 128 बिट एड्रेस सिस्टम को फॉलो करता है। यानी की इस में टोटल 128 बिट जितना एड्रेस स्टोर किया जा सकता है। जरा नीचे दिए आंकड़ों पर नजर डालिए:

340,282,366,920,938,463,463,374,607,431,768,211,456, (340 undecillion) लगभग इतने आईपी एड्रेस ipv6 पैटर्न में स्टोर किए जा सकते हैं। यह एक बहुत ही ज्यादा बड़ी क्वांटिटी है, इतनी बड़ी कि पूरी दुनिया में मौजूद हर इंसान अगर चाहे तो लाखों आईपी एड्रेस इस्तेमाल कर ले फिर भी ip-address की कोई कमी नहीं होगी।

7rrs:2109:5679:2:600:i7ii:ie39:32vc

यह एक ipv6 IP address का उदाहरण है।

इसमें हर सेक्शन को कॉलन (:) लगाकर अलग किया जाता है।

यह एक अल्फान्यूमेरिक एड्रेस सिस्टम है। यानी कि इस आईपी एड्रेस में नंबर्स के साथ-साथ अल्फाबेट्स भी इस्तेमाल किए जाते हैं।

इसकी असीमित क्षमता इसे ipv4 से बहुत ही ज्यादा एडवांस बनाती है। चुंकि नये आई पी एड्रेस के लिए कई सारे रिक्त स्थान मौजूद हैं इसलिए यह आसानी से किसी भी तरह के नेटवर्क मॉडल को इस्तेमाल करके कनेक्टिविटी दे सकता है। यह डायरेक्ट एडरेसिंग की फैसिलिटी भी देता है।

अपनी डिजिटल डिवाइस का आईपी एड्रेस कैसे पता करें?

अगर आप स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं, तो उसका आईपी एड्रेस पता करने के लिए सबसे पहले फोन की सेटिंग्स में जाए। वहां पर अबाउट् डिवाइस में क्लिक कीजिए और फिर स्टेटस पर क्लिक कीजिए। आपके सामने आपके फोन का आईपी एड्रेस दिया हुआ होगा।

Phone settings—>about device—>status

अगर आपको कंप्यूटर में आईपी एड्रेस पता करना है, तो स्टार्ट बटन पर क्लिक कीजिए फिर उसके बाद में कंट्रोल पैनल पर क्लिक करके नेटवर्क एंड इंटरनेट को ओपन कीजिए। फिर उसके बाद कनेक्शंस के सामने वायरलेस नेटवर्क कनेक्शन पर क्लिक कीजिए और अब डिटेल्स पर क्लिक कीजिए। यहां पर आपको अपने सिस्टम का आईपी एड्रेस दिखाई देगा।

Start button—> control panel —>Network and internet —> network and sharing centre —> wireless network connection—> details

एप्पल आईओएस का इस्तेमाल करने वाले अपना आईपी एड्रेस पता करने के लिए सबसे पहले सेटिंग्स में जाए, फिर वाईफाई ऑप्शन पर क्लिक करें, सिलेक्ट एक्टिव नेटवर्क पर क्लिक करें और i बटन पर क्लिक करने के बाद उन्हें आईपी एड्रेस मिल जाएगा।

Settings—> select Wi-Fi—> select active network—> click i button

वैसे आप चाहें तो गूगल सर्च इंजन में व्हाट इज माय आईपी एड्रेस (what is my IP address) लिखने पर गूगल आप का आईपी एड्रेस शो कर देगा।

इसके अलावा और भी कई तरीके हैं, जिन्हें इंटरनेट की मदद से आप ढूंढ सकते हैं। WhatIsMyIPAddress भी एक ऐसी वेबसाइट है, जो आपके डिजिटल डिवाइस का आईपी एड्रेस बताने में आपकी मदद कर सकती है।

आईपी एड्रेस के बारे में पढ़कर शायद आप कंफ्यूज हो सकते हैं, कि कभी आपका पाला ऐसी चीजों से पड़ गया तो आप क्या करेंगे? तो घबराने की बात नहीं हैं, क्योंकि आईपी एड्रेस को सेट करना, जनरेट करना या मेंटेन रखना यह नेटवर्क इंजीनियर का काम होता है। अगर फिर भी कभी आपको अपने डिजिटल डिवाइस में आईपी एड्रेस से रिलेटेड कोई भी ऐरर मैसेज दिखता है तो आप अपने डिवाइस के नेटवर्क इंजीनियर से कांटेक्ट कर सकते हैं। यानी कि जिस भी ब्रांड का आपका डिवाइस है, उस कंपनी के नेटवर्क इंजीनियर को अपनी डिवाइस दिखा सकते हैं। वह आई पी एड्रेस से जुड़ी हुई सारी समस्या हल कर देगा।

उम्मीद करते हैं कि आईपी एड्रेस क्या है इस से जुड़ी हुई यह सारी जानकारी आपको पसंद आई होगी। आप इसके बारे में और जानकारी चाहते हैं या आपके पास इससे जुड़ा हुआ कोई सवाल है, तो आप हमें कमेंट में लिख करके बता सकते हैं। इसके अलावा हम आपके सुझाव भी आमंत्रित करते हैं, कि अगर आप लोग कुछ बदलाव करना चाहते हैं, या किसी तरह कि अन्य जानकारी चाहते हैं तो भी आप हमें कमेंट में लिख कर बता सकते हैं।

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