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वर्चुअल मेमोरी क्या है – Virtual Memory in Hindi

कंप्यूटर अपना सारा काम अपनी मेमोरी की मदद से करता है। कंप्यूटर की मेमोरी अलग-अलग हिस्सों में बंटी हुईं होती है जैसे कि फिजिकल मेमोरी, वर्चुअल मेमोरी, कैच मेमोरी। इनमें से फिजिकल मेमोरी और कैच मेमोरी हार्डवेयर डिवाइस के रूप में कंप्यूटर में लगाए जाते हैं जबकि वर्चुअल मेमोरी एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है यानी कि यह कोई हार्ड डिस्क या हार्ड ड्राइव नहीं है बल्कि यह एक तकनीक है जिसका इस्तेमाल कंप्यूटर की मेमोरी को बढ़ाने के लिए किया जाता है। जैसा नाम से ही पता चल रहा है यह कंप्यूटर में एक वर्चुअल या काल्पनिक मेमोरी है। दरअसल हार्ड डिस्क की स्टोरेज कैपेसिटी का इस्तेमाल करके ही वर्चुअल मेमोरी काम करती है।

कंप्यूटर में दो तरह की फिजिकल हार्डवेयर मेमोरी डिवाइसेज लगाई जाती है। पहली है हार्ड डिस्क और दूसरी है रेम। रेम की फुल फॉर्म है रेंडम एक्सेस मेमोरी। हार्ड डिस्क मैटल के बॉक्स में पैक सीडीज का ग्रुप होता है, जबकि रेम एक चिप की तरह होती है।

Hard Disk

RAM 

वर्चुअल मेमोरी की जरुरत क्यू होती है?

हार्ड डिस्क की क्षमता काफी ज्यादा होती है पर यह खुद किसी भी तरह के प्रोग्राम या डाटा को एग्जीक्यूट नहीं कर सकती है, इसके लिए रेम की जरूरत पड़ती है। यह बिल्कुल ऐसा है कि जैसे किसी बहुत बड़े बर्तन में कुछ खाने का सामान रखा है पर हम सीधा बड़े बर्तन में नहीं खा सकते हैं बल्कि हमें एक छोटी प्लेट चाहिए जिसमें हम जरूरत के हिसाब से खाना ले सके। जितनी बड़ी प्लेट की साइज होगी उतना ही ज्यादा खाना हम एक बार में ले सकते हैं या फिर अलग-अलग वैरायटी का खाना एक ही प्लेट में ले सकते हैं। रेम भी बिल्कुल इसी तरह काम करती है। जो भी प्रोग्राम हमें एग्जीक्यूट करना होता है उसकी एक वर्चुअल कॉपी रेम में ट्रांसफर कर दी जाती है ताकि जब भी हम उस फाइल में कोई भी चेंज करें तो बिना हमारी इजाजत के उसका कोई भी असर हार्ड डिस्क में मौजूद ओरिजिनल फाइल पर ना पड़े। इसीलिए हमें जब भी फाइल में कोई चेंज सुरक्षित करने हो तो हमें सेव बटन पर क्लिक करना पड़ता है।

जितनी ज्यादा रेम उतनी ही ज्यादा एप्लीकेशंस हम एक साथ एग्जीक्यूट कर सकते हैं। लेकिन शुरुआत में रेम काफी महंगी हुआ करती थी। तब कीमत बचाने के लिए कम केपेसिटी वाली जैसे 512 MB की कैपेसिटी वाली रेम इस्तेमाल की जाती थी। पर रेम की साइज कम होने से मल्टीटास्किंग पॉसिबल नहीं थी, इसीलिए वर्चुअल मेमोरी को इस्तेमाल किया गया। वर्चुअल मेमोरी एक तरह से कंप्यूटर में सेकेंडरी रेम की तरह ही वर्क करती है जिस से कंप्यूटर की स्पीड कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है।

वर्चुअल मेमोरी की कोई फिक्स साइज नहीं होती है। इसकी साइज जरूरत के हिसाब से खुद-ब-खुद कम या ज्यादा हो जाती है। हालांकि आज के समय में हम खुद हमारे कंप्यूटर की वर्चुअल मेमोरी की केपेसिटी घटा या बढ़ा सकते हैं।

वर्चुअल मेमोरी काम कैसे करती है?

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कई सारी एप्लीकेशंस एक साथ चलाने पर रेम पर लोड पड़ने लगता है जिससे रेम की स्पीड कम हो जाती है और ऐसे समय में कंप्यूटर सबसे पहले हार्ड डिस्क में कुछ स्पेस को वर्चुअल मेमोरी में बदल देता है उसके बाद रेम में यह चेक करता है कि कौन सी एप्लीकेशन सबसे कम इस्तेमाल की जा रही है या काफी देर से इस्तेमाल नहीं की गई है ऐसी एप्लीकेशंस को वर्चुअल मेमोरी में ट्रांसफर कर देता है यानी कि यह सारा डाटा रेम से टेंपरेरी हट चुका है और वर्चुअल मेमोरी में शिफ्ट हो गया है। अब यह डाटा वर्चुअल मेमोरी में तब तक पड़ा रहेगा जब तक हम इसे फिर से इस्तेमाल ना करना चाहे। अगर हमने इसे इस्तेमाल किए बगैर ही कंप्यूटर को शट डाउन कर दिया तो यह वर्चुअल मेमोरी खुद ब खुद डिलीट हो जाएगी। साधारण शब्दों में कहें तो वर्चुअल मेमोरी रेम की क्षमता को बढ़ा देती है यह रैम के लिए खुद अलग से एक हार्ड डिस्क की तरह ही काम करती है। जितनी भी एप्लीकेशन रेम में चल रही है उनमें से जो कम इस्तेमाल में आ रही है या काफी देर से इस्तेमाल नहीं की गई है उसे वर्चुअल मेमोरी खुद में स्टोर कर लेता है जिससे रैम में फिर से स्पेस खाली हो जाता है और रैम दूसरी एप्लीकेशंस को ज्यादा अच्छे तरीके से एग्जीक्यूट कर पाती है।

आपको जानकर बड़ा आश्चर्य होगा के प्रोसेसिंग का कंप्यूटर के हार्ड डिक्स से कुछ भी लेना देना नहीं है बल्कि कंप्यूटर के लिए तो सिर्फ एक ही मेमोरी है वह है प्राइमरी मेमोरी यानी की रेम और वर्चुअल मेमोरी। हार्ड डिस्क तो सारे डाटा को सिर्फ और सिर्फ स्टोर करने के लिए ही काम में आती है।

कई बार वह डाटा या फाइल्स या एप्लीकेशंस जिसे हम इस्तेमाल करना चाहते हैं वह साइज में काफी बड़ी होती है यहां तक कि रेम की क्षमता से भी बड़ी। ऐसी कंडीशन में भी वर्चुअल मेमोरी ही काम आती है क्योंकि यह मेन फाइल्स को पेजिंग टेक्नोलॉजी की मदद से छोटे-छोटे हिस्सों में डिस्ट्रीब्यूट कर देती है। वर्चुअल मेमोरी हर पेज का एड्रेस अपने अंदर स्टोर कर लेती है और जिस पेज की रिक्वायरमेंट रेम को है वही पेज रेम को देती है बाकी अपने पास होल्ड करके रखती है। इस तरह से वह बड़ी साइज की फाइल आसानी से कंप्यूटर में एग्जीक्यूट हो जाती है। हम यह भी कह सकते हैं कि वर्चुअल मेमोरी कंप्यूटर को यह एहसास कराती है कि उसकी प्राइमरी मेमोरी की क्षमता एप्लीकेशन की साइज से ज्यादा है जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं होता इसीलिए इस कंसेप्ट को वर्चुअल मेमोरी नाम दिया गया है।

अब हम यह समझ लेते हैं की हार्ड डिस्क, रेम और वर्चुअल मेमोरी के बीच में कम्युनिकेशन कैसे होता है सबसे पहले जो भी एप्लीकेशन या डाटा हमें चाहिए, हार्ड डिस्क में जिस जगह वह स्टोर है वह उस डेटा का फिजिकल ऐड्रेस हैं। जब भी इस डेटा को रेम में लोड किया जाता है या फिर वर्चुअल मेमोरी में ट्रांसफर किया जाता है तो उसके टेंपरेरी ऐड्स को लॉजिकल एड्रेस या वर्चुअल ऐड्रेस कहा जाता है यानी कि एक ही डेटा के अलग-अलग ऐड्रेसेज होते हैं। इनमें से फिजिकल ऐड्रेस ही परमानेंट होता है। लॉजिकल या वर्चुअल ऐड्रेस काम खत्म होते ही खुद ब खुद डिलीट हो जाते हैं। यह कंसेप्ट बिल्कुल ऐसा है कि आपके घर का परमानेंट ऐड्रेस हमेशा एक ही रहेगा लेकिन अगर आप कुछ वक्त के लिए कहीं और रहने चले जाते हैं तो आपका एक टेंपरेरी कम्युनिकेशन ऐड्रेस बन जाता है लेकिन जब आप वापस अपने घर लौट आते हैं तब आपका परमानेंट एड्रेस आपका घर का एड्रेस ही होता है। सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो किसी भी फाइल या डाटा या एप्लीकेशन का फिजिकल ऐड्रेस कभी भी नहीं बदलता है लेकिन हर बार जब उसे एग्जीक्यूट किया जाता है तो उसका लॉजिकल या वर्चुअल ऐड्रेस बदल जाता है।

एक ही तरह के डाटा के इतने सारे अलग-अलग तरह के ऐड्रेसेस को मैनेज करने के लिए कंप्यूटर में मेमोरी मैनेजमेंट यूनिट (MMU) नामक डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है।

जब भी डाटा एक मेमोरी यूनिट से दूसरी मेमोरी यूनिट में जाता है तो या तो स्वैपिंग या पेजिंग टेक्निक का इस्तेमाल किया जाता है। स्वेपिंग टेक्निक में हर बार पूरा डाटा ट्रांसफर किया जाता है जबकि पेजिंग टेक्निक में डाटा के जिस हिस्से की जरूरत है खाली वही हिस्सा ट्रांसफर किया जाता है।

कंप्यूटर की भाषा में पेज का मतलब होता है एक फिक्स साइज का मेमोरी ब्लॉक जैसे के 512kb का एक मेमोरी ब्लॉक। वर्चुअल मेमोरी भी ऐसे पेजेज का इस्तेमाल करता है और जो भी एप्लीकेशन का डाटा वर्चुअल मेमोरी में आता है उन सारे डेटा को जिन भी पेज में स्टोर किया जाएगा उस पेज का एड्रेस ही उस डाटा का वर्चुअल ऐड्रेस कहलाएगा। एग्जिक्युशन के वक़्त जिस पेज की जरुरत होती है उस पेज को हार्डडिस्क से रेम और वर्चुअल मेमोरी में ट्रांसफर कर दिया जाता है, यही कंसेप्ट डिमांड पेजिंग कहलाता है।

इन सब तकनीक के इस्तेमाल से ही कंप्यूटर की प्रोसेसिंग स्पीड इतनी बढ़ पाती है।

हम उम्मीद करते है के अब आपको वर्चुअल मेमोरी तकनीक समज में आ गई होगी। किसी भी तरह की क्वेरी के लिए हमे कमेंट बॉक्स में लिख कर बताये।

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